कैलाश खेर उन सूफी गायकों में से एक हैं जिनकी आवाज के कायल हर उम्र के संगीत प्रेमी हैं। उन्होंने अपनी रूहानी आवाज से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में खूब नाम कमाया है। सूफियाना खूबसूरत आवाज के राजा कैलाश खेर यूं ही नहीं बन गए। एक गायक के तौर पर उनका संघर्ष 13 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्मे कैलाश खेर का जन्म 7 जुलाई 1973 को हुआ था।
बचपन से संगीत का शौक रखने वाले कैलाश खेर ने छोटी उम्र में ही अपना घर छोड़ने का फैसला कर लिया और सूफी संगीत को अपना जीवन समर्पित कर दिया। इसके बाद कैलाश खेर ने संगीत के कई गुन सीखे, लेकिन जिंदगी जीने के लिए उन्हें आर्थिक संघर्ष का भी सामना करना पड़ा। यही वजह रही कि कैलाश खेर बच्चों को संगीत का ट्यूशन देना शुरू कर दिया, जिससे उनका हर रोज अभ्यास भी होने लगा।
इसके बाद भी कैलाश खेर की जिंदगी में संघर्ष ने साथ नहीं छोड़ा। उन्हें बहुत बार रिजेक्शन्स का भी सामना करना पड़ा। ‘अल्लाह के बंदे’ (फिल्म-वैसा भी होता है 2, साल 2003) के इस गायक को हर तरफ से निराश होकर साल 1999 में अपने एक दोस्त के साथ बिजनेस करने का फैसला करना पड़ा। व्यापार में काफी घाटा हुआ। यह घाटा कैलाश खेर को डिप्रेशन की ओर लेकर चला गया। हालात यह हुए कि उन्होंने सुसाइड तक करने का मन बना लिया था।
इसके बाद साल 2001 आया, दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी कर कैलाश खेर उम्मीद के शहर मुंबई चले गए। खाली जेब और घिसी हुई चप्पल पहने संघर्ष कर रहे कैलाश में संगीत के लिए कमाल का जूनून था। एक दिन उनकी मुलाकात संगीतकार राम संपत से हुई। उन्होंने कैलाश को कुछ रेडियो जिंगल गाने का मौका दिया और फिर कहते हैं न कि प्रतिभा के पैर होते हैं, वो अपना मंजिल तलाश ही लेती है। देखते ही देखते कैलाश खेर ने अपनी आवाज से संगीत के जहां को जीत लिया।
कैलाश खेर ने 2001 में मुंबई आकर अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद नक्षत्र डायमंड्स के लिए कैलाश खेर से जिंगल गाने के लिए कहा गया था। लेकिन बाद में वह जिंगल किसी और की आवाज में तैयार किया गया। हालांकि, उन्हें इस गाने के लिए 5 हजार रुपये जरूर दिए गए थे।