रायपुर : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ने आज सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास की 18 दिसम्बर को जयंती के अवसर पर प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। साय ने कहा है कि बाबा गुरु घासीदास ने अपने उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सत्य, अहिंसा और सामाजिक सद्भावना का मार्ग दिखाया। उन्होंने ‘मनखे-मनखे एक समान’ के प्रेरक वाक्य के साथ यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य एक समान है। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ सामाजिक समरसता और सबके उत्थान की दिशा में काम किया।
साय ने कहा कि बाबा गुरु घासीदास जी ने लोगों को मानवीय गुणों के विकास का रास्ता दिखाया और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। उनका जीवन दर्शन और विचार मूल्य पूरी मानव जाति के लिए कल्याणकारी और अनुकरणीय है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय 18 दिसम्बर को बिलासपुर, लालपुर और मोतिमपुर में आयोजित बाबा गुरु घासीदास जयंती कार्यक्रम में शामिल होंगे।
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री विष्णु देव साय 18 दिसम्बर को प्रातः 11.20 बजे राज्य अतिथि गृह पहुना शंकर नगर रायपुर से प्रस्थान कर पुलिस ग्राउण्ड हेलीपेड पहुंचेंगे और वहां से 11.30 बजे हेलीकॉप्टर द्वारा प्रस्थान कर दोपहर 12 बजे गुरु घासीदास विश्वविद्यालय परिसर बिलासपुर पहुंचकर वहां आयोजित गुरु घासीदास जयंती कार्यक्रम में शामिल होंगे।
वहीं आज परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा की जयंती एवं भव्य शोभा यात्रा का आयोजन सतनामी समाज, फुलझर अंचल सरायपाली के द्वारा किया जा रहा है। इस जयंती को ऐतिहासिक बनाने के लिए क्षेत्र के अधिकारी कर्मचारी व ग्रामीण जन जोर-शोर से तैयारी में जुटे हुए हैं।
भारत में हर साल 18 दिसंबर को गुरू घासीदास जयंती मनाई जाती है। घासीदास मूलतः छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे, लिहाजा इस दिन छत्तीसगढ़ में यह दिवस बड़े उत्साह एवं श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में राज्य सरकार ने इस दिन राजकीय अवकाश घोषित किया हुआ है।
गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी (छत्तीसगढ़) स्थित एक गरीब परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम महंगू दास एवं माता का नाम अमरौतिन था। उनकी पत्नी का नाम सफुरा था। बचपन से ही सत्य के प्रति अटूट आस्था एवं निष्ठा के कारण बालक घासीदास को कुछ दिव्य शक्तियां हासिल हो गईं, जिसका अहसास बालक घासी को भी नहीं था, उन्होंने जाने-अनजाने कई चमत्कारिक प्रदर्शन किए, जिसकी वजह से उनके प्रति लोगों की आस्था एवं निष्ठा बढ़ी।
ऐसे ही समय में बाबा ने भाईचारे एवं समरसता का संदेश दिया। उन्होंने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता के लिए किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ सतनाम पंथ की स्थापना की। उनके सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं। सतनाम पंथ का संस्थापक भी उन्हें ही माना जाता है।
गुरु घासीदास के सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, वर्ण भेद एवं हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, परस्त्रीगमन का निषेध और दोपहर में खेत न जोतना आदि हैं। बाबा गुरु घासीदास द्वारा दिये गये उपदेशों से समाज के असहाय लोगों में आत्मविश्वास, व्यक्तित्व की पहचान और अन्याय से जूझने की शक्ति प्राप्त हुई। बाबा सामाजिक एवं आध्यात्मिक जागरण की आधारशिला स्थापित करने में सफल हुए। छत्तीसगढ़ में आज भी इनके द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ के लाखों अनुयायी हैं मौजूद हैं।