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अखिल भारतीय रामनामी बड़े भजन मेला जैजैपुर और कुरदी में होगा,मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय करेंगे उद्घाटन

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सक्ती  : छत्तीसगढ़ में लगने वाले अनेक मेलों की श्रृंखला का आरम्भ पौष माह की एकादशी को आयोजित होने वाले बड़े भजन मेले से माना जाता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण इसके नाम के अनुरूप यहाँ निरंतर चलने वाले रामनामी भजनों के कार्यक्रम होते हैं। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के नवीन जिला सक्ती अंतर्गत जनपद पंचायत मालखरौदा के चारपारा गाँव में एक दलित सतनामी युवक परशुराम द्वारा सन 1890 के आसपास रामनामी सम्प्रदाय की स्थापना की गई थी। यह रामनामी लोग महानदी के आसपास पामगढ़,नवागढ़,अकलतरा, जांजगीर, जैजैपुर, बम्हनीडीह, मालखरौदा, चंद्रपुर, सारंगढ़, रायगढ़, बिलाईगढ़, कसडोल आदि जनपदों के 300 से अधिक गाँवों में रहते हैं। इन्हीं रामनामियों की परम्परा के अनुरूप इस क्षेत्र में प्रति वर्ष पूस माह की एकादशी को अखिल भारतीय रामनामी बड़े भजन मेला आयोजित होता है। तीन दिवसीय इस बड़े भजन मेला को एक बार यहाँ बहने वाली महानदी के इस पार और अगली बार महानदी के उसपार आयोजित किया जाता है।

बड़े भजन मेला आयोजन के सम्बन्ध में यहाँ प्रचलित किंवदंती के अनुसार एक बार सावन-भादों माह में जब महानदी में बाढ़ आई हुई थी तब कुछ रामनामी छोटी डोंगी से नदी पार कर रहे थे। बाढ़ में फंसकर उनकी डोंगी डूबने लगी तब उन्होंने प्रार्थना की और संकल्प लिया की यदि उनकी डोंगी सही सलामत पार हो गयी तो वे बड़े भजन का आयोजन करेंगे। उनकी प्रार्थना के बाद डोंगी स्वतः ही किनारे जा लगी। इसके बाद उन कृतज्ञ रामनामियों ने महानदी के किनारे बसे पिरदा गांव में पहले बड़े भजन का आयोजन किया और इस प्रकार बड़े भजन मेले का उदभव हुआ।
आरम्भ में बड़े भजन,रामनामी सम्प्रदाय की एक धार्मिक सामाजिक गतिविधि थी जिसका उद्देश्य रामनामी समाज की एकता, समरसता और उसका प्रचार-प्रसार था। धीरे-धीरे इसके साथ बाजार और मनोरंजन भी जुड़ गया। वर्तमान में इसने एक व्यापक तीन दिवसीय मेले का रूप ले लिया है। इस मेले के आयोजन के लिए यह नियम रहा है कि इसे क्रम से पूरब, पश्चिम एवं उत्तर, दक्षिण दिशा में स्थित गांवों में एकबार महानदी के इसपार तथा अगले वर्ष नदी के उसपार दिया जाता है। अगला मेला किस गांव में होगा इसका निर्धारण विभिन्न गांवों द्वारा बड़े भजन की मांग के आवेदन, उनकी आयोजन क्षमता और आवेदन की वरीयता और वहां उपलब्ध सुविधाओं को जांचकर एक समिति द्वारा किया जाता है। एक बार जिस गांव में यह मेला आयोजित हो गया तो वहां इसे दोबारा आयोजित नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह मेला रामनामी सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार का माध्यम है। पिछले एक सौ दस वर्षों में लगभग १३० गांवों में यह मेला लग चुका है।

मेले के लिए गांव का चुनाव करने के बाद समिति उस गांव जाकर मेले के लिए स्थान का चयन करती है, वहां बड़े भजन के लिए स्थापित किये जाने वाले भजन खांब अथवा जैत खांब बनाने के लिए स्थान निश्चित करती है। गांव वालों को लिखकर यह कहना होता है कि मेले के तीन दिनों वहां नशाबंदी रहेगी। मेले के तीन किलोमीटर क्षेत्र में मांस-मदिरा निषिद्ध रहेगी। मेले के लिए वांछित सुविधाओं को ग्राम पंचायत उपलब्ध कराएगी। बड़े भजन के आयोजन के समय से पहले जैत खांब बनाया जाता है, पहले इसे बनाने हेतु गांव वाले धन एकत्रित करते थे, परन्तु आजकल विधायक अथवा सांसद अपने फंड से यह पैसा उपलब्ध करा देते हैं। मेले में अपार जनसमूह आने से इसका राजनैतिक महत्त्व भी बढ़ गया है। बड़े भजन मेले के मुख्य दो भाग होते हैं, एक भाग में जैत खांब और विभिन्न गांवों से आए रामनामी श्रद्धालुओं का जमघट और उनके टेंट होते हैं। यहाँ भजन-पूजन का कार्यक्रम अनवरत चलता रहता है। बाहर गांवों से आये लोग यहीं रहते, खाना बनाते हैं, खाते हैं और भजन करते हैं। दूसरे भाग में अनेक प्रकार की दुकानें, खेल-तमाशे वाले, झूले तथा मनोरंजन के साधन लगाए जाते हैं।

बड़े भजन मेले का मुख्य आकर्षण यहाँ आने वाले रामनामी साधू-संत तथा नख-शिख रामनामी होते हैं जो समूचे समूचे शरीर पर रामराम गुदवाए रहते हैं। ये सफ़ेद कपडे की ओढ़नी ओढ़ते हैं जिसपर काले रंग से रामराम लिखा रहता है। सर पर मोरपंखों से बना मुकट धारण किये रहते हैं। मोर मुकट पर भी रामराम लिखते हैं। कांसे के घुँघरू बजाते हुए यह लोग राम नाम का भजन करते हैं। बीच-बीच में कबीर अथवा अन्य संतों के दोहे उच्चार करते हैं। स्त्री एवं पुरुष रामनामियों के ये समूह बड़े ही प्रभावशाली दिखते हैं। बड़े भजन का आरम्भ एकादशी के दिन कलशपूजा के उपरांत जैत खांब पर कलश स्थापना और ध्वजा चढाने के साथ होता है। मेले का समापन तीसरे दिन विशाल भंडारे के साथ किया जाता है। इसी दिन अगले बड़े भजन मेले के आयोजन स्थल का नाम घोषित किया जाता है। यह मेला इतने बड़े अकार और भीड़-भाड़ वाला होता है कि इसका व्यावसायिक एवं राजनैतिक महत्त्व नकारा नहीं जा सकता। पूरे मेले की भीड़ में रामनामी लोगों की संख्या बीस प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। घरेलु सामान, कपड़ों और खाने-पीने की वस्तुओं की दुकानों की भरमार होती है। विभिन्न प्रकार के झूलों, मौत का कुआं, बड़े-बड़े जॉइंट व्हील आदि दूर मेले की निशानदेही करते हैं। इस सबके बावजूद मेले में व्यवस्था और अनुशासन देखने लायक होता है। इस वर्ष सन 2024 में जनवरी माह की 19 से 23 तारीख तक लगभग एक सौ पंद्रहवे बड़े भजन मेले का आयोजन जैजैपुर में होने जा रहा है। अनेक कारणों से इस वर्ष का मेला विशिष्ट रहा। यह इस मेले के इतिहास में पहली बार हुआ कि इसका आयोजन एक साथ दो गांवों कुरदी एवं जैजैपुर किया जाएगा। सर्वसहमति से निर्णय हुआ की इस वर्ष यह मेला जिला सक्ती के विकासखंड जैजैपुर के नगर पंचायत जैजैपुर में एवं विकासखण्ड मालखरौदा के गांव कुरदी में मेला लगेगा।