28 साल बाद कमल हासन की ‘इंडियन’ का पार्ट 2′ (हिंदुस्तानी 2) आ रहा था. उनका नाम ही फिल्म देखने की सबसे बड़ी वजह थी. प्रोस्थेटिक का इस्तेमाल करते हुए कमल हासन अपनी फिल्मों में जो कमाल दिखाते हैं, वो शायद ही कोई इंडियन एक्टर अब तक कर पाया है. फिर क्या था कमल हासन और शंकर ने एक साथ आकर क्या कमाल दिखाया है, इस उत्सुकता के खातिर ये फिल्म देख डाली. लेकिन अपनी नींद सैक्रिफाइज करते हुए सुबह-सुबह जब कोई फिल्म देखने जाता है और वो फिल्म बेहद बुरी होती है, तब जो फ्रस्ट्रेशन महसूस होता है, जो गुस्सा आता है. वो फ्रस्ट्रेशन मुझे इंडियन 2 देखकर महसूस हो रहा है.
सिर्फ कमल हासन के लिए मैं ये नहीं बोल रही हूं, ‘आता माझी सटकली, माला राग येतोय'(सिंघम से साभार) टाइम के हिसाब से फिल्म ज्यादा लंबी तो नहीं है, लेकिन देखते हुए आप इतना थक जाते हैं कि लगता है इसे सहने के लिए फिल्म में कम से कम दो इंटरवल तो होने ही चाहिए थे. आइए अब फिल्म के बारे में विस्तार से बात करते हैं.
कहानी
28 साल पहले देश में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले सेनापति (कमल हासन) अब इंडिया में नहीं रहते. अपने वीडियो से सामाजिक जागरुकता की कोशिश करने वाला एक युवाओं का गुट अब हांगकांग में रहने वाले सेनापति को ‘ब्रिंग बैक इंडियन’ कैंपेन के तहत इंडिया बुला लेता है. सेनापति का ‘ब्रिंग बैक इंडियन’ से ‘गो बैक इंडियन’ तक का सफर देखने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘इंडियन 2’ देखनी होगी.
निर्देशन और राइटिंग
फिल्म के निर्देशक और राइटर दोनों शंकर ही हैं. 14 साल पहले उन्होंने रोबोट जैसी फिल्म बनाई थी जो अपने समय से लगभग 10 साल आगे थी. उनका निर्देशन का अंदाज बाकियों से अलग और एडवांस होता है. इसलिए इंडियन 2 से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन घोर निराशा हुई. फिल्म में पुलिस अफसर और सेनापति के बीच एक चेसिंग सीक्वेंस है, जहां पुलिस वाले उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं और सेनापति सेगवे जैसे दिखने वाले मॉडर्न टायर पर सवार होकर भाग रहे हैं. वो चेसिंग सीक्वेंस देखकर लगता है कि इससे तो 20 साल पहले आई जॉन अब्राहम की ‘धूम’ का चेसिंग सीक्वेंस ज्यादा बेहतर था. बतौर निर्देशक और राइटर शंकर ऑडियंस की उम्मीदों पर बिलकुल भी खरे नहीं उतर पाए हैं.