हिंदू श्रद्धालुओं का महापर्व शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर,गुरुवार से हो गई हैं जो 12 अक्टूबर यानि दशहरा तक जारी रहेगी। ऐसे में इस दौरान हर भक्त माता रानी को खुश करने के लिए सभी उपाय करते है, लड्डू, पेड़े, बर्फी सहित 56 पकवानों का भोग भी माता रानी को लगाते हैं।
लेकिन,आज हम आपको राजस्थान के नागौर जिले में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जिसमें विराजमान देवी को प्रसाद के रूप में मदिरा यानी का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। इस मंदिर की खास बात यह है कि पुजारी द्वारा शराब पिलाए जाने पर माता शराब का सेवन भी करती हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार,राजस्थान के नागौर जिले में भंवाल गांव में इसी अनोखी माता का मंदिर स्थित है। इस देवी को भंवाल माता के नाम से जाना जाता है। भंवाल माता को काली माता का स्वरूप माना जाता है। इस माता को प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। इस देवी को ढाई प्याला शराब ही चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की एक और खास बात यह भी है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार डाकुओं ने किया था। बताया जाता है कि जमीन फाड़कर पेड़ के नीचे भंवाल माता प्रकट हुई थी।
चांदी के प्याले में माता को पिलाई जाती है शराब
स्थानीय लोग के अनुसार, शराब से भरा चांदी का प्याला भंवाल देवी के सामने करके पुजारी आंखें बंद कर उनसे प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करते है। कुछ ही देर में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा तीन बार किया जाता है। तीसरी बार प्याला आधा भरा रह जाता है। कहते हैं माता ढाई प्याला शराब ही ग्रहण करती हैं।
मंदिर में ब्रह्माणी और काली माता की दो प्रतिमाएं हैं विराजित
बता दें, मंदिर के गृभगृह में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। दाएं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता (भंवाल माता) की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं।
डाकुओं ने इस मंदिर का निर्माण किया
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, कुछ डाकू एक गांव को लूटकर भंवाल माता मंदिर क्षेत्र में जाकर छुप गए इस दौरान राजा की फौज वहां आ गई और उन्हें पकड़ने लगी तभी डाकू ने माता से अरदास लगाई। तभी भंवाल माता ने राजा की फौज को भेड़ बकरियों में बदल दिया। उसके बाद डाकुओं ने माता का विशाल मंदिर बनाया और पूजा अर्चना करने लगे।
मंदिर में लगे प्राचीन शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 12वीं शताब्दी से भी पुराना है। इसके अलावा यह मंदिर लाल पत्थरों से निर्मित है। इस मंदिर की गिनती राजस्थान के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में होती है।