रिपोर्टर मुन्ना पांडेय,सरगुजा : नगर लखनपुर सहित आसपास ग्रामीण इलाकों में पारम्परिक लोक आस्था का त्योहार देवउठन मंगलवार को मनाया गया। इस मौके पर तुलसी सालिक राम जी का विवाहोत्सव मनाई गई।इस त्योहार को दीपावली की तरह कार्तिक मास के शुक्लपक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपने ध्यान निंद्रा से जागते हैं। यही से मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है। सदियों पुरानी चली आ रही प्रथा अनुसारकृषक वर्ग के लोग अपने घरों में चावल आटे के घोल से आंगन में गाय बैलों के खुर निशान दिवारो तथा गौशाला में पंजे, तीर धनुष का छाप बनाते हैं गाय बैल बछड़ों का लक्ष्मी रुप में विधिवत पूजन कर उनके माथे पर तिलक गले में फूल माला पहनाते हैं तथा हल नागर में तिलक करते हैं दरअसल मवेशियों को घरेलू सदस्य मानते हुए शकरकद, कुम्हड़ा रोटी चावल पकवान आदि खिलाते हैं। घरों को जगमग दीपमालाओं से सजाया जाता है।
इसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी का विशेष महत्व होता है तुलसी सालिक राम जी के विवाहोत्सव का भी आयोजन होता है। ऐसा करने से भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की कृपा एवं आशिर्वाद प्राप्त होता है। इस त्योहार की खासियत यह भी रही है कि तांत्रिक गुनिया बैगा अपने तंत्र मंत्र जडी बुटी को जागृत करते हैं। ताकि वक्त ज़रूरी में जरूरतमंद लोगों के काम आ सकें। अपने तंत्र मंत्र की सिद्धि के लिए लोग बकरा, मुर्गा की बलि चढ़ाते हैं।आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों देव उठन मनाने का सिलसिला सप्ताह भर तक चलता है। खाने खिलाने तथा पीने पिलाने का दौर भी चलता है।
खुशी के उन्माद में लोग सामुहिक रूप से करमा बायर नृत्य भी करते हैं। फिलहाल क्षेत्र में देव उठनी त्योहार धूमधाम के साथ आतिशबाजी करते हुए मनाया गया। देर रात तक नगर लखनपुर में पटाखों का शोर गुंजता रहा।