हथियारों के साये में यहां के रहवासी अपना जीवन गुजारा करते थे। नक्सल आतंक से गांव का विकास पूरी तरह से ठप हो गया था। सड़क,पानी,बिजली,शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की बात ही दूर, ग्रामीणों के लिए यह सब सपना ही था। बीमार पड़ने पर मरीज को कंधे में उठाकर ग्रामीण अस्पताल ले जाते थे। इन सारी मुश्किलों के बीच बढ़नीझरिया के रहवासियों ने दो दशक गुजारे।
स्थानीय रहवासी महावीर राम बताते है कि गांव के हालात में बदलाव उस समय हुआ जब अक्टूबर 2014 में मंगल नगेसिया की झारखंड के गुमला जिले के गुड़माटोली के जंगल में उसके ही साथियों ने ही हत्या कर दी।
इधर, केंद्र सरकार ने जशपुर जिले से लाल आतंक खत्म करने के लिए सीआरपीएफ की तैनाती कर दी। लगातार चले सर्च आपरेशन और मुठभेड़ ने नक्सलियों के पैर उखड़ गए और 2018 में जशपुर जिला नक्सल मुक्त कर दिया गया।
ऐसे बदली तस्वीर
गांव के बच्चे धमाचौकड़ी करते नजर आते हैं तो ग्रामीण व बुजुर्गों की टोली सनातन के रंग में ऐसी रंगी हुई है कि गांव में सुबह से लेकर शाम तक हनुमान चालीस और जयश्रीराम का गुंजायमान होते रहता है। सप्ताह के सातों दिन ग्रामीण रामधुन में रमे रहते हैं। राम और रामभक्त हनुमान का नाम इनके रग-रग और बढ़नीझरिया के कण-कण में रच बस गया लगता है। यहां की भजन मंडलियां आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों और पड़ोसी राज्य झारखंड में भी राम नाम की अलख जगा रही हैं।
मेहमानों के स्वागत का अंदाज भी निराला
यहां के ग्रामीणों ने मेहमानों के स्वागत सत्कार का तरीका भी सनातनी है। ग्रामीण मेहमानों का स्वागत भजन कीर्तन से करते हैं। स्थानीय रहवासी महावीर राम ने बताया कि बढ़नीझरिया में भगवान श्रीराम और श्रीहनुमान के भजन की परंपरा पुरानी है। तपेश्वर राम ने बताया कि इस गांव में साल भर ढोल मंजीरे के साथ भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देती है।
रामधुन में झूम रहे प्रत्याशी व समर्थक
बढ़नीझरिया में जिला पंचायत और जनपद पंचायत के सदस्य के लिए वोट मांगने के लिए पहुंचने वाले भी यहां भक्ति के रंग में रंगे हुए हैं। यहां के ग्रामीण जनप्रतिनिधियों का स्वागत स्थानीय सादरी बोली में भजन-कीर्तन कर करते हैं।