चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी आज से नवरात्र की शुरुआत तो हो ही रही है, इसके साथ ही शुरू हो रहा है नव संवत्सर यानी विक्रम संवत 2082. इसे हिंदू नववर्ष कहा जाता है और सनातन परंपरा के प्रतीक के रूप में काल गणना के लिए सबसे सटीक कैलेंडर के तौर पर जाना जाता है. दावा है कि विक्रम संवत सूर्य और चंद्र दोनों ही की गतियों पर आधारित सबसे सटीक कैलेंडर है, जिसमें 12 मास हैं और ग्रहों पर आधारित सात दिनों के सप्ताह की गणना की देन भी यही प्राचीन कैलेंडर है.
सटीक हैं विक्रम संवत के दावे
विक्रम संवत के बारे में जो भी दावे किए जाते हैं, वह सटीक ही बैठते हैं, क्योंकि इसे बनाने वाले प्राचीन भारत के खगोल विद्या के जानकार आचार्य वाराह मिहिर थे. उन्होंने पृथ्वी की सूर्य के चक्कर लगाने की सही गणना कर, दिन और रात का समय निर्धारित किया और इसी आधार पर तिथियों को भी रखा. तिथियों की गणना पल, प्रतिपल, घटी, मुहूर्त और पहर में इतने सूक्ष्म तरीके से विभाजित है कि इसमें कहीं भी त्रुटि नहीं हो सकती है. विक्रम संवत अधिक वैज्ञानिक है, लेकिन उसे अव्यावहारिक और जटिल बताकर लागू नहीं किया गया जबकि नेपाल में विक्रम संवत ही प्रचलित है.
वैज्ञानिक सिद्धांतों पर खरा उतरता है विक्रम संवत
संस्कृत के विद्वान रहे और भारत रत्न प्रोफेसर पांडुरंग वामन काणे ने अपनी पुस्तक ‘धर्मशास्त्र का इतिहास’ में विक्रमी संवत का जिक्र किया है. वह लिखते हैं कि ‘विक्रम संवत सबसे वैज्ञानिक है पश्चिमी कैलेंडर में सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण और अन्य खगोलीय परिस्थितियों की कोई जानकारी पहले से नहीं मिलती है, जबकि विक्रम संवत बता देता है कि आने वाले किस दिन ग्रहण होगा, बल्कि यह गणना करके अगले कई वर्षों के भ ग्रहण बता देता है. यह ऋतुओं के साथ-साथ ग्रह नक्षत्रों की पूरी स्थिति को भी बताता है.”
विक्रम संवत में वर्ष को सौर वर्ष और मास को चंद्रमास कहते हैं. यहां यह भी बताना जरूरी है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से सिर्फ उत्तर भारत में ही नया वर्ष शुरू होता है. दक्षिण भारत में विक्रम संवत का नया वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होता है.
विक्रम संवत की शुरुआत कैसे हुई?
सवाल उठता है कि विक्रम संवत की शुरुआत कैसे हुई और यह अस्तित्व में कैसे आया और किसने इसे कैलेंडर के तौर मान्यता देते हुए स्थापित किया? पौराणिक संदर्भों को देखें तो ब्रह्मपुराण में भी इसका जिक्र मिलता है. इसके अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष् की शुरुआत का दिन माना जाता है. यह ब्रह्मा का भी पहला दिन है. इसी दिन भारतवर्ष में काल गणना की भी शुरुआत मानी जाती है. लेकिन, भारत में जो ग्रेगोरियन कैलेंडर प्रचलित है, उसकी शुरुआत ईसा मसीह के जन्म से मानी जाती है. विक्रम संवत, ईस्वी वर्ष से 57 वर्ष पहले शुरू होता है.
जैन ग्रंथ में भी होता है जिक्र
विक्रम संवत की शुरुआत करने में एक प्रतापी राजा का नाम आता है, जिनका नाम था विक्रमादित्य. जैन ग्रंथ कल्काचार्य कथा की मानें तो विक्रम काल की स्थापना राजा विक्रमादित्य द्वारा की गई थी. इस ग्रंथ में उनके द्वारा किसी राजा पर विजय की बात भी दर्ज है, जिसका नाम आकाश बताया जाता है. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाती है कि वह राजा शक या हूण है. हालांकि, पुरातत्विद वी.ए. स्मिथ और डी.आर. भंडारकर का मानना रहा है कि, चंद्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी और इसी ने उस वक्त के कैलेंडर का नाम बदलकर ‘विक्रम संवत’ कर दिया था.