नई दिल्ली : जगन्नाथ पुरी में इस साल 27 जून 2025 को भव्य और दिव्य रथ यात्रा शुरू होने जा रही है। 10 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में लाखों की तादात में लोग शामिल होंगे। इस मंदिर में कई ऐसी परंपराएं हैं, जो देखकर लोग हैरान हो जाते हैं।
इनमें से एक महाप्रसादी की परंपरा है। दुनिया की सबसे बड़ी इस मंदिर की रसोई में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के लिए रोजाना 56 भोग का महाप्रसाद बनाया जाता है। यहां तीन तरह के प्रसाद बनते हैं, जो भक्तों को दिए जाते हैं। मगर, इसमें सबसे अद्भुद है मरणासन्न व्यक्ति के लिए बनने वाला प्रसाद।कहते हैं जो व्यक्ति मृत्युशैय्या पर पड़ा होता है, उसके लिए यहां पर प्रसाद बनाया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कितने तरह का प्रसाद यहां बनता है।
तीन तरह का बनाता है प्रसाद
जगन्नाथ पुरी का महाप्रसाद तीन तरह का होता है। पहला संकुदी महाप्रसाद, जिसे मंदिर में ही ग्रहण करना होता है और भक्त इसे घर नहीं ले जा सकते हैं। इसमें सभी प्रकार के भोग यानी चावल, दाल, सब्जियां, दलिया आदि आते हैं।
दूसरे प्रकार का महाप्रसाद सुखिला कहलाता है, जिसमें सूखी मिठाइयां शामिल होती हैं। इस प्रसाद को भक्त अपने घर भी लेकर आते हैं और परिवार व रिश्तेदारों को बांटते हैं।
इसके अलावा यहां निर्मला प्रसाद के नाम से भी एक अन्य प्रसाद मिलता है, जिसमें सूखे चावल होते हैं। मंदिर के पास कोइली वैकुंठ में इस प्रसाद को खासतौर पर मरणासन्न व्यक्तियों के लिए बनाया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से मरने वाले व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा यहां निर्मला प्रसाद के नाम से भी एक अन्य प्रसाद मिलता है, जिसमें सूखे चावल होते हैं। मंदिर के पास कोइली वैकुंठ में इस प्रसाद को खासतौर पर मरणासन्न व्यक्तियों के लिए बनाया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से मरने वाले व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
क्यों कहते हैं इसे महाप्रसाद
कहते हैं कि प्रसाद को जब बनाया जाता है, तो उसमें कोई सुगंध नहीं आती है। इसके बाद इसे माता बिमला देवी के मंदिर में ले जाकर भोग लगाया जाता है। फिर इस प्रसाद का भोग मुख्य मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को लगाया जाता है।इसके बाद जैसे ही इस प्रसाद को मंदिर से बाहर लाया जाता है, उससे सुगंध आने लगती है। इसी वजह से इसे महाप्रसाद कहा जाता है। इसके बाद भक्तों को मंदिर में स्थित आनंद बाजार में मिलता है।