Home छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ के लिए उपयोगी साबित हो रही नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना!...

छत्तीसगढ़ के लिए उपयोगी साबित हो रही नरवा, गरवा, घुरवा, बारी योजना! ग्रामीणों की जिंदगी में दिख रहे बेहतर बदलाव

21
0

रायपुर :  छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार के साढ़े चार साल पूरे हो चुकें है। इस दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को पूरा करने का संकल्प मुख्यमंत्री ने लिया और इसका क्रियान्वयन करने ऐसी अनेक जनहितकारी योजनाएं बनाई गई जिससे किसानों, महिलाओ और युवाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से लाभान्वित किया। नरवा, गरवा, घुरवा ,बारी योजना छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल की सबसे महत्‍वाकांक्षी योजना है।यह योजना मुख्‍यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्‍ट भी है, इसलिये राज्‍य के प्रशासनिक स्‍तर पर इस योजना को लेकर बहुत गंभीरता बरती जा रही है। नरवा गरवा घरवा बाड़ी योजना के लांच होने के बाद से राज्‍य में रोजगार के मौके ग्रामीण स्‍तर पर ही मिलना शुरू हो गये हैं। यह योजना छत्‍तीसगढ़ की ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था पर बहुत ही सकारात्‍मक प्रभाव डाल रही है।

छत्‍तीसगढ़ की इस योजना की तारीफ स्‍वयं प्रधानमंत्री मोदी भी मुख्‍यमंत्रियों की बैठक के दौरान कर चुके हैं। इसलिये माना जा रहा है कि आने वाले समय में इस प्रकार की योजना कुछ अन्‍य राज्‍यों में भी तथा राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी देखने को मिल सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में नरवा, गरवा, घुरवा ,बारी योजना काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज हम इस योजना के बारें में विस्तार से चर्चा करने वाले है। नरवा, गरवा, घुरवा ,बारी योजना के जरिए राज्य के ग्रामीण नई इबारत गढ़ रहे है। इस योजना से ना सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। बल्कि छत्तीसगढ़ के पंरपरागत जीवन शैली का आधुनिक ढंग से प्रचार प्रसार हो रहा है। नरवा, गरवा, घुरवा और बारी का हमारे जीवन काफी महत्व रहा है। इन चार चीजों के बगैर जीना मुश्किल है। सीएम बघेल और कांग्रेस सरकार ने इन चीजों की महत्ता को समझा और इसे योजना के माध्यम से लोगों के बीच फिर लॉन्च किया।

नरवा योजना : राज्य के लगभग 29000 बरसाती नालों को चिन्हित कर इस कार्यक्रम के तहत उनका ट्रीटमेंट कराया जा रहा है। इससे वर्षाजल का संरक्षण होने के साथ-साथ संबंधित क्षेत्रों का भू-जलस्तर सुधर रहा है। प्रदेश में नरवा बनाने का कार्य भी द्रुतगति से चल रहा है। इन नालों के जरिए ग्रामीणों को कृषि के लिए सिंचाई का पानी मिल रहा, मवेशियों को पीने के पानी की समस्या से निजात मिल रही साथ ही गर्मी के दिनों में भी ग्रामीणों को निस्तारी के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। साथ ही वन्य प्राणियों के लिए भी गर्मी के दिनों में पेयजल की किल्लत नहीं होती और उनके लिए हर वक्त पानी मिल रहा है।

नरवा योजना की वजह से भू-जल स्तर में हो रहा लगातार सुधार नरवा : विकास कार्य के तहत धमतरी वनमण्डल अंतर्गत चयनित नालों में उपचार किये जाने से वनक्षेत्रों के भू-स्तर में काफी सुधार दिखाई दे रहा है। वनवासियों एवं वनक्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पेयजल एवं निस्तारी आदि रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो रहा है। इसका वे भरपूर लाभ प्राप्त कर रहे हैं। वनक्षेत्रों में जलस्तर सुधार होने से वन संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यों को बढ़ावा मिलने के साथ -साथ वन्यप्राणियों के पीने एवं आवश्यकता हेतु बारह मासी नालों की संख्या में वृद्वि हो रही है। फलस्वरूप वन्यप्राणियों के वनक्षेत्रों से बाहर आबादी क्षेत्रों में आने की घटनाओं में भी कमी आई है।

धमतरी वनमंडल के डीएफओ मयंक पाण्डेय ने बताया कि वन मण्डल के अंतर्गत कैम्पा मद के तहत नरवा विकास कार्यक्रम के तहत ए.पी.ओ. वर्ष 2019-20 में 07 नालों में 9669.000 हे. क्षेत्र में 2270 संरचनाएं , 2020-21 में 07 नालों में 8263.000 हे. क्षेत्र में 15596 संरचनाएं, 2021-22 में 04 नालों में 1977 हे. क्षेत्र में 13641 संरचनाएं एवं वर्ष 2022-23 में 06 नालों में 4810.000 हे. क्षेत्र में 34688 संरचनाएं इस प्रकार कुल 24 नालों में 24719.000 हे. क्षेत्र में 66195 संरचनाएं निर्मित किये गये हैं, शेष संरचनाएं निर्माणाधीन हैं। निर्मित संरचनाओं में स्टापडेम, गेबियन संरचना, ब्रश वुड चेक डेम, लूज बोल्डर चेक डेम, डाईक, डबरी, कन्टूर पाल, 30×40 मॉडल, डब्ल्यू.ए.टी., कन्टूर ट्रेंच, अर्दन डेम, ईजीपी, परकोलेशन टैंक, गल्ली प्लग, स्टोन बंड, ईपीजी, ईसीबी जैसी संरचनाएं बनाई गई हैं।

गरवा योजना : इस कार्यक्रम के तहत पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गांवों में गौठान बनाकर वहा पशुओं को रखने की व्यवस्था की गई हैं। प्रदेश में करीब 11,288 गौठान स्वीकृत हुए है, अब तक 9631 गौठान बन गए है। जिनमे से 4372 गौठान पूरी तरह से स्वावलंबी है। गौठानों में पशुओं के लिए डे-केयर की व्यवस्था है। इसके तहत चारे और पानी का निःशुल्क प्रबंध किया गया है। इससे मवेशियों को चारे के लिये भी भटकना नही पड़ रहा है। मुख्यमंत्री ने किसानों को पैरा दान करने की अपील की इसका असर यह हुआ कि किसान स्वमेव आगे आये और इन गौठानों में 4 लाख 513 हज़ार क्विंटल से अधिक का पैरा दान किया गया है।

गरवा योजना ने दिए रोजगार के नए अवसर : गरवा योजना के तहत निर्मित गौठानों में न सिर्फ गोबर की खरीदी, खाद निर्माण और बिक्री भी की जा रही है, बल्कि इसके इतर आजीविका सृजन के नवीन मापदण्ड अपनाए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्वावलम्बी, सम्बल और मजबूत बनती जा रही है। गौठान अब न केवल गोबर खरीदी-बिक्री केन्द्र हैं, बल्कि जीवनयापन का सशक्त माध्यम बन चुके हैं। इन गौठानों में वर्मी खाद और विक्रय के अलावा सब्जी उत्पादन, मशरूम स्पॉन, मुर्गी पालन, बकरीपालन, अण्डा उत्पादन, केंचुआ उत्पादन, मसाला निर्माण, कैरीबैग एवं दोना-पत्तल निर्माण, बेकरी निर्माण, अरहर एवं फूलों की खेती सहित विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को समूह के सदस्य भलीभांति अंजाम दे रहे हैं। जिले के कुरूद विकासखण्ड के गौठानों में आजीविकामूलक गतिविधियों की सफलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्पादन कार्य के लागत व्यय को अलग करने के बाद लगभग लाखों रूपए की अतिरिक्त आय इन समूहों को हुई है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है।

घुरवा योजना : इसके माध्यम से जैविक खाद का उत्पादन कर इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। फिलहाल इन गौठान में 20 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, साढ़े 5 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट तथा 19 लाख क्विंटल सुपर कम्पोस्ट प्लस का निर्माण किया गया है। घुरवा के लिये 92 हजार पक्के टांके स्वीकृत किये गए हैं इनमें, 81 हज़ार टांके बनकर तैयार है। वहीं 16 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बिक्री सहकारी समीतियों के माध्यम से की जा चुकी है।

महिलाओं ने 6 महीनों में ही कमाए 6 लाख रूपए : निर्मला साहू बताती हैं कि वे लोग मनरेगा से निर्मित सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई में जैविक खाद के साथ ही केंचुआ उत्पादन भी कर रही हैं। उन्होंने अब तक 50 क्विंटल केंचुआ का उत्पादन कर लिया है। इनमें से 24 क्विंटल की बिक्री भी हो चुकी है, जिससे समूह को चार लाख 80 हजार रूपए प्राप्त हुए हैं। इकाई के संधारण एवं केंचुआ खरीदी पर हुए खर्चों को काटने के बाद समूह को इससे चार लाख 62 हजार रूपए की शुद्ध आय हुई है। समूह की सदस्य श्रीमती गौरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट से हुई कमाई से समूह ने बकरीपालन शुरू किया है। इसके लिए 70 हजार रूपए की बकरियां खरीदी गई हैं। उनका समूह भविष्य में पशुपालन के काम को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए 50 हजार रूपए अलग से रखे गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए गौठान में भी 50 हजार रूपये लगाए हैं।

बारी योजना : छत्तीसगढ़ में बाड़ी को बारी कहा जाता है। ग्रामीणों के घरों से लगी भूमि में 3 लाख से अधिक व्यक्तिगत बाडियों को विकसित किया गया है। साथ ही गौठनो में बनाई गई करीब 4429 सामुदायिक बाड़ियों के जरिये फल साग-सब्जियों के उत्पादन से कृषकों को आमदनी के साथ-साथ पोषण सुरक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। इस योजना के जरिये ग्रामों औऱ बसाहटों में बाड़ियों को विकसित कर लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने प्रोत्साहित किया जा रहा है।

बाड़ी योजना ने बदली निर्मला साहू की जिंदगी : निर्मला साहू ग्राम मोहतरा ने बताया कि बाड़ी योजना का लाभ लेकर 2 एकड़ में खेती कर रहे हैं, हल्दी लगाई है, हल्दी बेचकर 40 हजार की आमदनी की है। श्रीमती साहू ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट योजना बहुत अच्छी है, 3 लाख 24 हजार 7 सौ रुपए का बेचे हैं। बाड़ी योजना के तहत कम लागत में सब्जी का उत्पादन बढ़ेगा। सरकार द्वारा रूरल इंडस्ट्रियल पार्क शुरू किए गए है। वहां ड्राई मशीन का उपयोग करके सब्जियों को आकर्षक पैकिंग करके बाजार में अच्छा दाम दिया जा रहा है। ग्रामीण महिलाएं समूह बनाकर बाड़ी योजना के माध्यम से आर्थिक रूप से सशक्त बन सकते हैं। आज के समय मौसमी सब्जियां पूरे साल उपलब्ध रहती है, क्योंकि कृषि वैज्ञानिकों ने कई शोध किए है और सिंचाई की सुविधा भी बढ़ी है।