रायपुर : मुख्यमंत्री की विशेष पहल से प्रदेश में रोजगार, स्व-रोजगार, स्थानीय संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और उद्यमिता विकास को लेकर अभूतपूर्व कार्य किए गए हैं। विगत साढ़े चार वर्षों में ग्रामीण तबकों और सुदूर वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले जरूरतमंद लोगों तक इन योजनाओं का भरपूर लाभ पहुंचा है। आज प्रदेश का हर वर्ग आर्थिक रूप से सशक्त और सम्पन्न हो रहा है। छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में निवास करने वाले वनवासी एवं आदिवासियों के हित में और वनों में उनके अधिकारों को और अधिक दृढ़ करने एवं वनोपज से आय में वृद्धि के सपने को साकार करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं।
कोदो, कुटकी और रागी जैसा अनाज पोषण से भरपूर हैं और देश में इनकी अच्छी मांग है। साथ ही शहरी क्षेत्रों में ये बहुत अच्छी कीमत पर बिकता हैं। भूपेश कका की मंशा के अनुरूप वन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में निवास करने वाले वनवासी एवं आदिवासियों के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में देश का 74 प्रतिशत लघु वनोपज संग्रहित होता है।
भूपेश सरकार की तरफ से दावा किया गया है कि देश में लघु वनोपज के कुल संग्रह में छत्तीसगढ़ की हिस्सेदारी तीन चौथाई हो गई है। इसका श्रेय सरकार की नीतियों को देते हुए सरकार की दलील है कि लघु वनोपज के संग्रह को प्रोत्साहन दिए जाने के कारण राज्य में वनोपज संग्रह से आजीविका चलाने वालों की संख्या में 4 गुने का इजाफा हुआ है। इस वजह से ज्यादा संग्रह होने के कारण पूरे देश में होने वाले कुल वनोपज के संग्रह में छत्तीसगढ़ की भागीदारी तीन चौथाई हो गई है। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों द्वारा पारंपरिक रूप से उगाए जाने वाले कुछ मिलेट्स की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी (MSP) पर खरीद भी शुरू कर दी गई है। इन मिलेट्स में रागी, कोदो और कुटकी शामिल हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार मोटे अनाज यानी मिलेट्स में शामिल कोदो, कुटकी और रागी सहित कुल 67 लघु वनोपजों की खरीद एमएसपी पर कर रही है। भूपेश सरकार का दावा है कि छत्तीसगढ़ में स्थानीय संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और उद्यमिता विकास के लिए किए गए प्रयासों की वजह से बीते साढ़े चार सालों में ग्रामीण और सुदूर वनांचल क्षेत्रों के जरूरतमंद लोग वनोपजों के संग्रह का लाभ उठा रहे है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर शुरू की गई इस मुहिम के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में वनवासी एवं आदिवासियों द्वारा वनोपज के संग्रह का दायरा बढ़ा है। नतीजतन, छत्तीसगढ़ में देश के 74 प्रतिशत लघु वनोपज संग्रहित होने लगा है।
छत्तीसगढ़ में सरकार ने वन क्षेत्रों में उपजने वाली फसलों को एकत्र करने वाले वनवासी समुदायों के हित में लघु वनोपजों की संख्या में इजाफा किया है। इससे पहले राज्य में वनोपजों की श्रेणी में केवल 7 प्रकार की उपज शामिल थीं। अब इनकी संख्या बढ़ाकर 67 कर दी गई है। अब सरकार 67 लघु वनोपजों की खरीद एमएसपी पर कर रही है। लघु वनोपज की एमएसपी पर खरीद का दायरा बढ़ने के फलस्वरूप बीते साढ़े चार सालों में वनोपज का संग्रह करने वालों की संख्या में भी 4 गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है।
वनोपज का दायरा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ को, देश का सबसे बड़ा वनोपज संग्राहक राज्य होने का गौरव मिला है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में किए गए प्रयासों के फलस्वरूप लगभग 13 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों एवं 06 लाख वनोपज संग्राहकों को अतिरिक्त आय होने लगी है। इसका सबूत, तेंदूपत्ता के संग्रह की दर 2500 रुपए प्रति बोरा से बढ़ाकर 4 हजार रूपए प्रति मानक बोरा किया जाना है। इसकी वजह से बीते 4 सालों में तेंदू पत्ता बीनने के मेहनताने के रूप में 2146.75 करोड़ रुपए का वनवासियों को भुगतान किया गया है।