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बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के शपथ ग्रहण को दी थी SC में चुनौती, ₹5 लाख का जुर्माना लगा

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सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिकाकर्ता पर नाराजगी जताते हुए उस पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसने यह दावा किया था कि बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने ‘दोषपूर्ण’ तरीके से शपथ ग्रहण की है. शीर्ष अदालत ने इस प्रकार की याचिका को पब्लिसिटी स्टंट यानी प्रचार पाने का तुच्छ प्रयास करार दिया. सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ दिलाए जाने के बाद हस्ताक्षर कराये गये हैं, इसलिए इस तरह की आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं. बेंच में जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे.

याचिका डिसमिस- 5 लाख जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये पीआईएल बस प्रचार पाने करने के लिए जनहित याचिका के इस्तेमाल का एक तुच्छ प्रयास था. सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये भी कहा, ‘याचिकाकर्ता इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि पद की शपथ सही व्यक्ति को दिलाई गई थी. शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ के बाद हस्ताक्षर लिये गये है. इसलिए ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं.’ कोर्ट ने कहा, ‘हमारा स्पष्ट मानना है कि इस तरह की फर्जी जनहित याचिकाएं न्यायालय का समय बर्बाद करती हैं और ध्यान भी भटकाती हैं. ऐसे मामलों के कारण अदालत का ध्यान अधिक गंभीर मामलों से हट जाता है और इस प्रकार न्यायिक मानव संसाधन एवं न्यायालय की रजिस्ट्री के बुनियादी ढांचे का दुरुपयोग होता है.’

भारी जुर्माने की जरूरत: SC

बेंच ने ये भी कहा, ‘अब समय आ गया है जब अदालत को ऐसी तुच्छ जनहित याचिकाओं पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए. हम तदनुसार याचिका को 5 लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज करते हैं और याचिकाकर्ता को यह राशि 4 सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करनी होगी.’ शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर तय समय के भीतर जुर्माना राशि जमा नहीं की गई, तो इसे लखनऊ के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भू-राजस्व के बकाये के रूप में वसूला जाएगा.

क्या था पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट अशोक पांडे द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि वह बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को दिलाई गई ‘दोषपूर्ण शपथ’ से व्यथित हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ लेते समय अपने नाम के पहले ‘मैं’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. उन्होंने ये भी दलील दी कि केंद्र शासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव सरकार के प्रतिनिधियों और प्रशासक को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था.