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पुत्रदा एकादशी का व्रत करने मात्र से मिलेगा अनमोल रत्न, निसंतान दंपतियों के लिए कल का दिन है बेहद शुभ

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नई दिल्लीः सनातन धर्म में एकादशी बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में भी एकादशी को बेहद शुभ और फलदायी माना गया है। शास्त्र के जानकारों की मानें तो एकादशी व्रत करने मात्र से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वहीं, पुत्रदा दकादशी को संतान प्राप्ती के लिए बेहद शुभ माना गया है। बताया जाता है कि पुत्रदा एकादशी पर पुत्र प्राप्त की कामना करके व्रत करने से संतान प्राप्ति होती है। कल यानि 21 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी है।

शास्त्र के जानकारों की मानें तो पुत्रदा एकादशी का व्रत करने वालों पर भगवान विष्णु की सीधे कृपा बरसती है। वैसे तो साल में दो बार पुत्रदा एकादशी पड़ती हैं। एक पौष मात्र में जिसे पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है और दूसरा श्रावण मास में जिसे श्रावणी पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। ये एकादशी उन दंपतियों के लिए खास होता है, जिनकी शादी के बाद संतान नहीं होती है। कहा जाता है कि इस दिन संतान प्राप्ति की कामना लेकर व्रत करने वाले को पुत्र रत्न की प्रप्ति होती है।

पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी यानी कल मनाई जाएगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 20 जनवरी यानी आज शाम 7 बजकर 26 मिनट से शुरू हो रही है और इसका समापन 21 जनवरी यानी कल शाम 7 बजकर 26 मिनट पर होगा। पौष पुत्रदा एकादशी के पारण का मुहूर्त 22 जनवरी को सुबह 7 बजकर 14 मिनट से लेकर 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।

पौष पुत्रदा एकादशी पूजन विधि

पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले लोगों को व्रत से पहले दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए। यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकती हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।

पौष पुत्रदा एकादशी को लेकर ये कथा है प्रचलित

किसी समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था, उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। संतान नहीं होने की वजह से दोनों पति-पत्नी दुखी रहते थे। एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये और वे उसी दिशा में बढ़ते चलें। साधुओं के पास पहुंचने पर उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढ़ने लगा। वे दंपती जो निःसंतान हैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।