रिपोर्टर मुन्ना पांडेय,सरगुजा : आदि काल से चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुए नगर सहित आसपास ग्रामीण इलाक़ों में माताओं ने अपने संतानों के लम्बी उम्र की कामना को लेकर 24 एवं 25 सितम्बर को 36 घंटे का कठोर निर्जला जिवित पुत्रिका व्रत किये। तथा पंडित पुजारियों के मुखारविंद से राजा जिमुतवाहन, चिल्ही सियारनी के कथा सुने।
जिवितपुत्रिका व्रत करने से अमिष्ट फल की प्राप्ति होती है तथा संतान दिर्घायु होते हैं। धर्म शास्त्रों में इस व्रत को करने का उल्लेख मिलता है
द्वापर युग में महारानी द्रौपदी ने महर्षि धौम्य के बताये अनुसार अपने पुरवासिन महिलाओं के साथ मिलकर पुत्रों के लम्बी उम्र की कामना को लेकर इस व्रत को किया था। तब से जिवित पुत्रिका व्रत करने का चलन अस्तित्व में आया।
यह व्रत
सौभाग्य संतति के रक्षा तथा सुख समृद्धि की अभिलाषा के साथ प्रत्येक वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को महिलाओं द्वारा किया जाता है। व्रती महिलाएं जंगल से चिल्ही पेड़ की डगाल लाकर शुद्ध स्थान में स्थापित कर उसके नीचे कुश से निर्मित राजा जिमुतवाहन का आकृति बनाकर सोने चांदी अथवा रेशमी धागे से बने जिवितिया रख पूजा अर्चना करतीं है। बाद में व्रती महिलाएं इन सोने चांदी अथवा रेशमी धागे से बने जीऊतिया को गले में धारण करती है। कहा जाता है माताओं द्वारा किये गये पूजा-प्रार्थना का ही प्रभाव होता है, जो संतानों को हर अनहोनी विपति से बचाता है। फिलहाल क्षेत्र में
जिवित पुत्रिका व्रत पूरे आस्था के साथ मनाया गया। उपासक महिलाओं ने गुरुवार को व्रत तोड़ कर शुभ मुहूर्त में पारण किया।
सरगुजा जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में जीऊतिया तिहार मनाने का अपना अलग अंदाज होता है। दरअसल इस त्योहार में लोग करमा नृत्य करते हैं तथा अपने इष्ट मित्रों को आमंत्रित कर पकवान खिलाते हैं तथा कच्ची महुआ शराब पीने पिलाने का दौर भी चलता है। फिलहाल जीऊतिया तिहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।