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रमा एकादशी की ये है सही तिथि, जानिए किस मुहूर्त में करें श्री हरि विष्णु की पूजा

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हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व है। सभी एकादशियों में रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस बार यह एकादशी 28 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। जगत के पालन हार भगवान विष्णु को समर्पित रमा एकादशी हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है।

यह एकादशी दिवाली के चार दिन पहले आती है। रमा एकादशी व्रत को सबसे महत्वपूर्ण एकादशी में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या सहित अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भी व्यक्ति रमा एकादशी के दिन व्रत रखता है, उसके सभी पाप मिट जाते हैं। ऐसे में आइए जानते है इस साल रमा एकादशी की तिथि पूजा विधि और महत्व के बारे में –

कब है रमा एकादशी

पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 27 अक्टूबर को प्रात: काल 05:23 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 28 अक्टूबर को सुबह 07:50 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर 28 अक्टूबर 2024 को रमा एकादशी पर व्रत रखा जाएगा। लेकिन व्रत का पारण 29 अक्टूबर 2024 को होगा, जिसका शुभ मुहूर्त प्रात: काल 06:31 मिनट से लेकर 10:31 मिनट तक है।

रमा एकादशी पूजा के मुहूर्त

सूर्योदय- 28 अक्टूबर को प्रात: काल 06:30 मिनट पर

सूर्यास्त- 28 अक्टूबर को शाम 05:39 मिनट पर

चंद्रोदय- 29 अक्टूबर को देर रात 03:36 मिनट पर

चंद्रास्त- 29 अक्टूबर को दोपहर 03:32 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: काल 04:48 मिनट से लेकर सुबह 05:39 मिनट तक

विजय मुहूर्त- दोपहर में 01:56 मिनट से लेकर 02:41 मिनट तक

निशिता मुहूर्त- 28 अक्टूबर को देर रात 11:39 मिनट से लेकर 29 अक्टूबर को 12:31 मिनट तक

रमा एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा

एकादशी तिथि को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पवित्र नदी में स्नान करें।

आचमन कर रमा एकादशी व्रत संकल्प लें और पीले रंग का वस्त्र धारण करें।

भगवान सूर्य को लाल रंग मिश्रित जल से अर्घ्य दें। पूजा गृह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।

कलश स्थापित करने के बाद विधिवत भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग का फल, फूल, केसर मिश्रित खीर अर्पित करें।

आखिर में विष्णु चालीसा का पाठ, मंत्र जाप और आरती करें। संध्याकाल में आरती के बाद फलाहार करें।
अगले दिन पूजा पाठ कर व्रत खोलें। योग्य ब्राह्मण या निर्धन को दान देना चाहिए।