क्या कहती है स्टडी?
हाल ही में एक बड़े पैमाने पर किए गए एक अध्ययन में 8 साल तक 70,000 से ज्यादा लोगों की जांच की गई और इस दौरान एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस स्टडी के निष्कर्ष मनोरोग अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। अध्ययन में पता चला कि जो लोग रोजाना रात 1 बजे के बाद सोते हैं, वे वास्तव में परेशानी को न्यौता दे रहे हैं। साथ ही स्टडी में रात 1 बजे तक सोने की सलाह भी दी गई।
स्टडी में पता चला कि देर रात तक जागने वाले लोगों में मानसिक और व्यवहार संबंधी विकारों की दर ज्यादा होती है। स्टडी में शामिल प्रतिभागियों में से कुछ को मॉर्निंग टाइप, कुछ को ईवनिंग टाइप और कुछ को दोनों के बीच की कैटेगरी में बांटा गया। इस अध्ययन का मकसद नींद की प्राथमिकताओं और मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंध का पता लगाना था।
देर रात तक जागने के नुकसान
परिणामों से पता चला कि चाहे मार्निंग टाइप हो या ईवनिंग, देर से सोने वाले दोनों प्रकार के लोगों में डिप्रेशन और एंग्जायटी सहित मानसिक स्वास्थ्य विकारों की दर ज्यादा थी। मनोचिकित्सा और और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जेमी जिट्जर ने कहा कि, “सबसे खराब हालत निश्चित रूप से देर रात तक जागने वाले लोगों की है।” साथ ही शोधकर्ताओं ने इस गलत धारणा को भी खारिज कर दिया कि नींद की अवधि और नींद के समय की स्थिरता अच्छे मानसिक स्वास्थ्य में मदद करती है।
कैसे डालें जल्दी सोने की आदत?
जल्दी सोने की आदत विकसित करने के लिए एक फिक्स शेड्यूल फॉलो करना जरूरी है। एक बार में जल्दी सोना पॉसिबल नहीं है। इसलिए हर रात अपने सोने के समय को धीरे-धीरे 15-30 मिनट पहले शिफ्ट करते जाएं। साथ ही अपने शरीर को यह संकेत देने के लिए कि यह आराम करने का समय है, सोने से पहले एक आरामदायक दिनचर्या बनाएं। रीडिंग, मेडिटेशन या हॉट शावर जैसी एक्टिविटीज मदद कर सकती हैं। सोने से कम से कम एक घंटा पहले स्क्रीन का इस्तेमाल कम या बंद कर दें, क्योंकि इससे निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन (नींद के लिए जरूरी हार्मोन) के प्रोडक्शन को बाधित करती है।