तर्क का खंडन
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने उनके तर्क का खंडन करते हुए कहा कि यूसीसी किसी भी घोषणा का प्रविधान नहीं करती है। यह केवल लोगों से ऐसे रिश्ते के लिए पंजीकरण करने के लिए कह रही है।
यह कौन−सी निजता है, जिसका हनन हो रहा है ?
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “क्या रहस्य है? आप दोनों एक साथ रह रहे हैं। आपका पड़ोसी जानता है, समाज जानता है, और दुनिया जानती है। फिर आप जिस गोपनीयता की बात कर रहे हैं, वह कहां है …। क्या आप गुप्त रूप से, किसी एकांत गुफा में रह रहे हैं? आप नागरिक समाज के बीच रह रहे हैं। आप बिना शादी किए बेशर्मी से साथ रह रहे हैं। फिर वह कौन सी निजता है, जिसका हनन हो रहा है?”
याचिकाकर्ता से कहा कि वह लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ काम करेंबहस के दौरान याचिकाकर्ता ने अल्मोड़ा की एक घटना का हवाला दिया, जहां एक युवक की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अंतरधार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था। हाई कोर्ट ने मौखिक रूप से याचिकाकर्ता से कहा कि वह लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ काम करें।
यूसीसी को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा जाएगा
खंडपीठ ने आगे कहा कि इस मामले को यूसीसी को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा जाएगा और अगर किसी के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो संबंधित व्यक्ति अदालत में आ सकता है। मामले में केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई पहली अप्रैल नियत की है।
बागेश्वर में पर्यावरणीय क्षति की रिपोर्ट चौंकाने वाली
हाई कोर्ट ने बागेश्वर जिले में खड़िया खनन मामले में कहा कि जो फोटोग्राफ व सैटेलाइट तस्वीरें पेश की गई हैं, उससे संकेत मिला है कि पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं।