प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का कोई विशेषज्ञ नहीं होने को लेकर जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई। इस दौरान मुख्य सचिव का शपथपत्र प्रस्तुत न होने पर कोर्ट ने इसके लिए समय देते हुए अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
याचिका में कहा गया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 63(4) के तहत इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की स्थापना करना जरूरी है। वहीं छत्तीसगढ़ राज्य के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79-ए के तहत कोई परीक्षक या विशेषज्ञ नहीं है।
पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार के अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा ने बताया था कि केंद्रीय और राज्य प्रयोगशालाओं की अधिसूचना के लिए एक योजना लागू की गई है। प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए आवश्यक आईटी अधोसंरचना, उपकरणों की स्थापना, प्रशिक्षित व्यक्तियों की व्यवस्था करने और प्रयोगशाला संचालित करने की आवश्यकता होती है। राज्य डिजिटल फोरेंसिक लैब की स्थापना के समन्वय के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने पर विचार किया जा सकता है। इसको लेकर राज्य सरकार को आवेदन का प्रारूप भेजा गया था।
छत्तीसगढ़ पुलिस साइबर लैब की मान्यता के लिए समिति के सदस्यों की टीम आई थी। जिसने कुछ कमियों के बारे में अवगत कराया था। इसके बाद राज्य सरकार को 19 मार्च 2021 को मेल के माध्यम से पत्र भेजा था। वहीं 10 मार्च 2025 को भी पत्र से जानकारी दी गई। केंद्र का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को इस मामले में व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। साथ ही 19 मार्च 2021 के पत्र का केंद्र शासन को व्यक्तिगत रूप से क्या जवाब दिया गया है या आज तक जवाब क्यों नहीं दिया गया, इसकी जानकारी मांगी है।