वैशाख मास की अमावस्या को दर्श अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस साल यह तिथि 27 अप्रैल को पड़ रही है। हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है और दर्श अमावस्या पितरों को समर्पित है। इस दिन पिंडदान करने का विधान है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितरों का विधिपूर्वक पिंडदान करने से उन्हें तृप्ति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है, तो आइए दर्श अमावस्या पर पिंडदान करने के नियम और महत्व के बारे में जानते हैं।
पिंडदान के नियम
पिंडदान किसी पवित्र नदी के किनारे तीर्थ स्थान पर करना चाहिए, लेकिन किसी वजह से आप नहीं जा पा रहे हैं, तो आप घर पर भी कर सकते हैं।
पिंडदान का उत्तम समय दोपहर का माना जाता है।
पिंडदान के लिए पिंड मुख्य रूप से चावल के आटे, जौ के आटे या गेहूं के आटे से बनाए जाते हैं।
इसके अलावा काले तिल, शहद, घी, दूध और कुशा का प्रयोग किया जाता है।
पिंडदान करने से पहले स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करें।
पितरों का ध्यान करते हुए कुश की पवित्री धारण करें।
थाली में पिंड, जल, तिल, कुशा और फूल रखें।
पितरों का आह्वान करें और मंत्रों का उच्चारण करते हुए पिंड अर्पित करें।
पिंड अर्पित करने के बाद उस पर जल और काले तिल डालें।
पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें।
वैशाख अमावस्या का महत्व
दर्श अमावस्या पर पिंडदान करने का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
इससे पितृ प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि, आरोग्य और सफलता का आशीर्वाद देते हैं।
माना जाता है कि पिंडदान करने से वंश वृद्धि में होती है। साथ ही आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
पिंडदान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में आने वाली समस्याएं दूर होती हैं।
पिंडदान से घर में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
वैशाख अमावस्या पूजा मंत्र
ॐ पितृ देवतायै नम:।।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।।