कनाडा में हाल ही में संपन्न हुए संघीय चुनावों में प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी ने सोमवार को जीत हासिल की। ‘कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन’ ने मतगणना के शुरुआती रुझान आने के बाद यह दावा किया।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कनाडा के अमेरिका में विलय की धमकियों और व्यापार युद्ध ने लिबरल पार्टी की इस जीत में अहम भूमिका निभाई। देश के राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारक ‘कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन’ ने शुरुआती रुझानों के आधार पर अनुमान जताया कि लिबरल पार्टी संसद की 343 सीट में से कंजर्वेटिव पार्टी से ज्यादा सीट जीतेगी।
खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह को झटका उधर, खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह कनाडा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखने में विफल रहे। उन्होंने एनडीपी नेता के पद से इस्तीफा दे दिया है। जगमीत सिंह को लगभग 27.3 प्रतिशत वोट मिले और वे ब्रिटिश कोलंबिया में बर्नबी सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र में लिबरल उम्मीदवार से हार गए। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के प्रमुख जगमीत सिंह, जिन्हें खालिस्तान समर्थक नेता के रूप में जाना जाता है, ने मंगलवार को कनाडा चुनाव में अपनी सीट बरकरार रखने में विफल रहने के बाद इस्तीफा दे दिया। उनकी पार्टी में भी बड़ी गिरावट देखी गई ।
NDP को पार्टी का दर्जा खोने का खतरा इन चुनाव में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता जगमीत सिंह को एक बड़ा राजनीतिक झटका लगा है । जगमीत सिंह, जो 2017 में NDP के पहले सिख और पगड़ीधारी नेता बने थे, ने 2025 के संघीय चुनावों में अपने संसदीय क्षेत्र से हार का सामना किया। यह क्षेत्र 2021 की जनगणना के बाद नए सिरे से परिसीमित किया गया था। चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट के चलते NDP को संसद में आधिकारिक पार्टी का दर्जा खोने का खतरा है। इस पराजय के बाद सिंह ने घोषणा की कि वे अंतरिम नेता के चयन तक पार्टी का नेतृत्व करेंगे और फिर पद छोड़ देंगे।
भारत-विरोधी रुख और खालिस्तान से जुड़ाव जगमीत सिंह पर लंबे समय से खालिस्तान समर्थक समूहों के साथ संबंध रखने के आरोप लगते रहे हैं। उन्होंने टोरंटो में खालसा डे रैली जैसे आयोजनों में भाग लिया है, जहां खालिस्तान समर्थक नारे लगाए गए थे। इसके अलावा, 1985 के एयर इंडिया बम धमाके के मास्टरमाइंड तलविंदर सिंह परमार जैसे विवादास्पद व्यक्तियों के समर्थन में उनके रुख ने भारत-कनाडा संबंधों में तनाव बढ़ाया है। 2013 में भारत सरकार ने उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया था, जिसे उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के खिलाफ न्याय की मांग से जोड़ा था।
ट्रूडो सरकार से समर्थन वापसी सितंबर 2024 में, सिंह ने जस्टिन ट्रूडो की लिबरल सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे कनाडा की राजनीति में उथल-पुथल मच गई। उन्होंने ट्रूडो पर कॉर्पोरेट हितों के आगे झुकने और आम लोगों की समस्याओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। सिंह ने कहा, “लिबरल इतने कमजोर, स्वार्थी और कॉर्पोरेट हितों के प्रति समर्पित हैं कि वे आम लोगों की लड़ाई नहीं लड़ सकते।” हालांकि, इस समर्थन वापसी से तत्काल चुनाव की संभावना नहीं बनी, लेकिन इससे ट्रूडो सरकार को संसद में बहुमत बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है।
NDP की गिरती लोकप्रियता NDP की लोकप्रियता में गिरावट का एक कारण सिंह का लिबरल पार्टी के साथ गठबंधन भी रहा है। कई NDP समर्थकों ने इस गठबंधन को पार्टी के मूल्यों के खिलाफ माना और सिंह पर “Sellout Singh” जैसे उपनामों से हमला किया। इसके अलावा, सिंह की व्यक्तिगत जीवनशैली, जैसे महंगे ब्रांड्स का उपयोग और निजी स्कूलों में शिक्षा, ने भी उनकी छवि को प्रभावित किया है।
लिबरल पार्टी को पूर्ण बहुमत पर सवाल यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि लिबरल पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा या नहीं। चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, शुरुआत में कनाडा में माहौल लिबरल पार्टी के समर्थन में नहीं दिख रहा था लेकिन ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की कई बार बात की और उसके तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को कनाडा का गवर्नर संबोधित किया। उन्होंने कनाडा पर जवाबी शुल्क भी लगाए। ट्रंप के इन कदमों से कनाडा की जनता में आक्रोश बढ़ गया और राष्ट्रवाद की भावना प्रबल होने के कारण लिबरल पार्टी को जीतने में मदद मिली।