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बालोद के किसान ढेंस खेती से कमा रहे मुनाफा, पारंपरिक धान से हटकर अपनाया नया विकल्प

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त्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम पड़कीभाट के किसान पारंपरिक धान खेती छोड़कर ढेंस (कमल ककड़ी) की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। ग्रीष्मकालीन धान पर सरकारी प्रतिबंध के बीच किसानों ने कम लागत और अधिक मुनाफे वाली ढेंस खेती को अपनाया, जो अब 30 एकड़ क्षेत्र में फैल चुकी है।यह फसल न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक है।

ढेंस खेती का विस्तार
जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर पड़कीभाट में ढेंस खेती दलदली खेतों में फल-फूल रही है। शुरुआत में कुछ किसानों ने इसे अपनाया, लेकिन अब यह फसल बालोद, बस्तर, राजनांदगांव और धमतरी जैसे जिलों में सप्लाई हो रही है। किसान राजकुमार यादव और संतोष यादव बताते हैं कि ढेंस में धान की तुलना में कम लागत, कम पानी और 50% अधिक मुनाफा मिलता है। एक एकड़ से 50 हजार रुपये तक की आय होती है, और यह फसल तीन-चार माह में तैयार होकर साल में तीन-चार बार ली जा सकती है।

 मिट्टी के लिए वरदान
ढेंस एक हरी खाद फसल है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिससे अन्य फसलों का उत्पादन बेहतर होता है। इसकी खेती आसान और कम समय में पूरी होती है। किसान चन्द्रलाल निषाद ने बताया कि पानी की कमी के बावजूद उन्होंने ढेंस खेती चुनी और अब अच्छी कीमत पर फसल बेच रहे हैं। यह फसल कीचड़ में काम करने की आदत के साथ बेहद लाभकारी है।


हर हिस्सा उपयोगी
ढेंस का पौधा फूल से जड़ तक उपयोगी है। इसका फल (पोखरा) बाजार में बिकता है और पौष्टिक माना जाता है। ढेंस की सब्जी को लोग पसंद करते हैं, जबकि इसके फूल, जिन्हें कमल फूल कहा जाता है, दीपावली और देवउठनी जैसे पर्वों में खास मांग रखते हैं।

किसानों की पहल
कई किसान अब तैयार फसल को काटकर बाजार में सप्लाई कर रहे हैं। गांव में ढेंस खेती को अपनाने वालों की संख्या बढ़ रही है, जो कम संसाधनों में बेहतर आय का जरिया बन रही है। किसानों का मानना है कि यह फसल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।