तिल की खेती किसानों के लिए हमेशा से लाभदायक रही है. दो महीने की ये फसल किसानों को बंपर पैदावार के साथ अच्छी आमदनी देती है. बाजार में तिल की मांग लगातार बनी रहती है. इसका यूज खाद्य चीजों से लेकर कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स तक में किया जाता है. बढ़ती मांग के कारण किसानों को अच्छा मूल्य मिल रहा है. ये कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है
बाराबंकी जिले में काफी किसान काले और सफेद तिल की खेती करते हैं. अगर किसान भाई मई महीने में इसकी खेती करना चाहते हैं, तो काले और सफेद तिल की उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. तिल की ये किस्में 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाती हैं और कम समय में अधिक पैदावार देती हैं.
जवाहर तिल 306 की किस्म 86 से 90 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म से 700-900 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इसमें तेल की मात्रा 52 प्रतिशत होती है. यह किस्म पौधा गलन, सरकोस्पोरा पत्ती घब्बा, भभूतिया और फाइलोड़ी रोग के लिए सहनशील है.
आरटी 127 की किस्म 75 से 85 दिन में पक जाती है. इसके बीज सफेद रंग के होते हैं. इसमें तेल की मात्रा 45-47 प्रतिशत और प्रोटीन की मात्रा 27 प्रतिशत होती है. इसकी औसत उपज 6-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. ये किस्म जड़ और तना सड़न रोग, फ्लडी व जीवाणुजनित पत्ती धब्बा रोग के प्रति सहनशील है.
पीकेडीएस 12 की किस्म 82-85 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म से 650-700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इस किस्म में तेल की मात्रा 50-53 तक पाई जाती है. ये तिल मैक्रोफोमिना रोग के लिए प्रति सहनशील है. तिल की ये किस्म गीष्म कालीन खेती के लिए उपयुक्त है.
आरटी 46 के पौधे 100 से 125 सेमी ऊंचे होते हैं. पत्ती और फली छेदक कीट व पित्त मक्खी का प्रकोप कम होता है. इसमें गेमेसिस रोग का खतरा कम रहता है. 30 से 35 दिन में फूल आ जाते हैं. प्रत्येक पौधे में 4-6 शाखाएं निकलती हैं. ये किस्म 70 से 80 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसके बीज सफेद रंग के होते हैं और तेल की मात्रा 49 प्रतिशत होती है.
आरटी 46 के पौधे 100 से 125 सेमी ऊंचे होते हैं. पत्ती और फली छेदक कीट व पित्त मक्खी का प्रकोप कम होता है. इसमें गेमेसिस रोग का खतरा कम रहता है. 30 से 35 दिन में फूल आ जाते हैं. प्रत्येक पौधे में 4-6 शाखाएं निकलती हैं. ये किस्म 70 से 80 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसके बीज सफेद रंग के होते हैं और तेल की मात्रा 49 प्रतिशत होती है.