भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में घोषित संघर्ष विराम का मुद्दा अब राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। जहां केंद्र सरकार और बीजेपी ने इसे बड़ी कूटनीतिक सफलता बताया, वहीं कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस पर सवाल भी उठाए और प्रधानमंत्री से खुली चर्चा की मांग की। भाजपा और एनडीए ने संघर्ष विराम का स्वागत किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की जमकर सराहना की।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे भारत की “जीत” करार देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने आतंकवादियों और उनके मददगारों को करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा, “पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस दृढ़ता से जवाब दिया, उससे पूरा देश गर्व से भर गया है। हमारे जवानों की बहादुरी ने दुश्मनों को घुटनों पर ला दिया है।”
एनडीए के सहयोगी दल जेडी(यू) ने भी इसका समर्थन किया। पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, “भारत ने पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया है जिसे वह कभी नहीं भूल पाएगा।”
संघर्ष विराम के ऐलान पर कई सवाल खड़े किए
कांग्रेस ने भी आतंक के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को समर्थन दिया, लेकिन संघर्ष विराम के ऐलान पर कई सवाल खड़े किए। पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने कहा कि 2019 में पुलवामा और बालाकोट के वक्त की तरह, इस बार भी अमेरिका की भूमिका ने हालात शांत किए। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बयान को उद्धृत करते हुए कहा, “इसमें कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान ने तटस्थ स्थल पर बातचीत पर सहमति जताई है। यह द्विपक्षीयता की नीति से हटने जैसा है जो शिमला समझौते का हिस्सा थी।”
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शांति और संप्रभुता को समान रूप से महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने लिखा, “शांति सर्वोपरि है और संप्रभुता भी।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ किया कि आतंक के खिलाफ सरकार की हर कार्रवाई में वह साथ हैं। राजद नेता तेजस्वी यादव ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की और प्रधानमंत्री से संघर्ष विराम की पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से देने को कहा। राज्यसभा सांसद मनोज झा ने यहां तक कह दिया कि अगर यह फैसला अमेरिका या डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका में लिया गया है तो यह चिंताजनक है।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दो टूक कहा, “जब तक पाकिस्तान अपने क्षेत्र का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने के लिए करता रहेगा, तब तक स्थायी शांति संभव नहीं है।” उन्होंने सरकार के साथ खड़े रहने का भरोसा जताया लेकिन यह भी कहा कि संघर्ष विराम की घोषणा प्रधानमंत्री को करनी चाहिए थी, किसी विदेशी नेता को नहीं।
ओवैसी ने यह सवाल भी उठाया कि अगर बातचीत के लिए तटस्थ स्थल की बात हो रही है, तो क्या यह कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं है? उन्होंने पूछा, “क्या अमेरिका यह गारंटी देगा कि पाकिस्तान दोबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा?” वामपंथी दलों ने भी संघर्ष विराम का समर्थन किया, लेकिन साथ ही यह ज़ोर दिया कि पाकिस्तान को अपने इलाके से आतंकवाद को खत्म करने की सख्त ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। सीपीएम पोलित ब्यूरो ने कहा, “हम आशा करते हैं कि दोनों देश इस दिशा में काम करेंगे ताकि आम नागरिकों को आतंकवाद की मार से मुक्ति मिले।”
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष विराम पर राजनीतिक सहमति के साथ असहमति भी साफ तौर पर दिखी। बीजेपी जहां इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की बड़ी उपलब्धि बता रही है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं और विदेशी हस्तक्षेप पर चिंता जता रहे हैं। अब सबकी निगाहें सरकार की आगे की रणनीति और संसद या सर्वदलीय बैठक में इस मुद्दे पर संभावित चर्चा पर टिकी हैं।