सक्ती : प्रधानमंत्री आवास योजना—सरकार की वह महत्वाकांक्षी योजना, जो गरीबों को पक्की छत देने का भरोसा देती है। लेकिन ग्राम पंचायत रनपोटा में इस योजना का नाम आते ही भ्रष्टाचार की बदबू उठने लगती है। आरोप है कि यहां रोजगार सहायक मनोज साहू ने योजना को अपनी कमाई की दुकान बना लिया है।
नोहरदास बैष्णव, एक भूमिहीन ग्रामीण, जिनके पास अंत्योदय कार्ड है और मकान पूरी तरह जर्जर है—फिर भी उन्हें योजना का लाभ नहीं मिला। इसके उलट, जिनके पास पहले से सब कुछ है, उन्हें “नया मकान” मंजूर हो गया।
नोहरदास का आरोप है:
पीएम आवास योजना की फोटो खींचवाने के नाम पर 500 रुपये की अवैध वसूली।
5,000 रुपये में नाम जोड़ने की डील, वर्ना सूची से बाहर।
मनरेगा में काम करने के बाद भी 6 साल से मजदूरी नहीं मिली, जबकि बिना काम किए कुछ लोगों के खातों में पैसा ट्रांसफर हो गया।
पुराने मकानों की तस्वीरें खींचकर नए निर्माण दिखाने का फर्जीवाड़ा।
अब सवाल यह है—
जब सरकार खुद कहती है “एक रुपया भी लिया जाए तो कार्रवाई होगी”, तो फिर कलेक्टर साहब चुप क्यों हैं?
क्या छत्तीसगढ़ में योजनाएं सिर्फ भाषणों और होर्डिंग्स तक सीमित हैं?
क्या गरीबों की आवाज़ तभी सुनी जाएगी, जब वो सोशल मीडिया पर वायरल हो या आत्मघाती कदम उठा लें?
जनता का सवाल—
क्या सरकारी अफसरों की जवाबदेही अब सिर्फ कागजों में है?
अगर भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई नहीं होगी, तो “शून्य वसूली” का वादा झूठा साबित नहीं होगा क्या?
कब तक योजनाओं को घोटालों की भेंट चढ़ाया जाएगा?
ग्रामीणों की मांग है:
रोजगार सहायक मनोज साहू के खिलाफ तुरंत कड़ी कार्यवाही हो।
पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराई जाए। नोहरदास और अन्य पात्र हितग्राहियों को तत्काल योजना का लाभ मिले।
जब तक प्रशासन अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेगा, तब तक ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ जैसे सुनहरे सपने, भ्रष्टाचार की काली कोठरी में ही दम तोड़ते रहेंगे। अब प्रशासन को ठंडी फाइलों से बाहर निकलकर फौलादी फैसले लेने होंगे—वरना “एक रुपया भी नहीं लेंगे” का नारा सिर्फ पोस्टर तक ही सिमट जाएगा।