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अफसरों और जजों की कालोनी पर चीफ जस्टिस ने लगाया ब्रेक, फिर विधायकों की कॉलोनी कैसे बनेगी!

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रायपुर :  रायपुर में विधायक कॉलोनी विवाद के बीच एक नई जानकारी निकलकर आई है, उससे विधायक कॉलोनी का मामला खटाई में पड़ सकता हे। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने तेलांगना के एक केस में आदेश दिया है कि सरकारी जमीन किसी वर्ग विशेष को आबंटित नहीं की जा सकती। इसी फैसले के चलते बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जजों की कॉलोनी को रोक दिया था। इस चक्कर में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियो का भी प्लॉट आबंटन रुक गया।

क्या है मामला?

बता दें, 2022 में कांग्रेस सरकार ने पुराना रायपुर और नवा रायपुर के बीच में सेरीखेड़ी में हाउसिंग बोर्ड को 23 एकड़ जमीन अलॉट किया था। उसका मकसद था विधायकों, सांसदों, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और जजों के लिए कॉलोनी बनाना। हाउसिंग बोर्ड ने इस 23 एकड़ में 134 प्लॉट काटा था। इसमें से 49 प्लॉट पंचम विधानसभा के नए विधायकों के साथ कुछ सांसदों को दिया गया। बचा 85 प्लॉट। इसे ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों और जजों को दिया जाना था। ऑल इंडिया सर्विस मतलब आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसर।

बताते हैं, अधिकारियों ने न्यायपालिका के लोगों को खुश करने के लिए सोचा पहले जजों को प्लॉट आबंटित कर दिया जाए, फिर नौकरशाहों को दिया जाएगा। इसके लिए हाउसिंग बोर्ड ने बिलासपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया। रजिस्ट्रार जनरल से जजों की लिस्ट के साथ उनका एड्रेस मांगा गया ताकि उनसे आवेदन जमाकर उन्हें प्लॉट आबंटित कर दें। इसके बाद अफसरों को प्लॉट देने में सहूलियत होती। मंशा यह थी कि जजों को जमीन देने पर कोई कानूनी पेंच नहीं आएगा। मगर यह प्लानिंग फेल हो गई। मामला चीफ जस्टिस रमेश सिनहा के पास पहुंचा तो वे नाराज हो गए। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी वर्ग विशेष को सस्ते में जमीन देने पर पाबंदी लगा दी है तो फिर जजों को जमीन कैसे मिल सकती है। इसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने हाउसिंग बोर्ड को पत्र लिख कर जजों को प्लॉट आबंटित करने से मना कर दिया।

चीफ जस्टिस के कड़े तेवर के बाद जजों और अफसरों को प्लाट आबंटन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। करीब साल भर से 85 प्लॉट नौकरशाहों और जजों के लिए आबंटित होने का रास्ता देख रहे हैं।

तेलांगना के एक केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने आदेश दिया था कि किसी वर्ग विशेष को रियायती दर पर सरकारी जमीन नहीं दी जा सकती। जस्टिस संजीव खन्ना अब भारत के चीफ जस्टिस बन चुके हैं। हालांकि, अधिकारिक तर्क यह है कि जमीन सरकारी जरूर है, मगर यह गाइडलाइन दर पर दिया जा रहा, इसलिए यह रियायत नहीं है। मगर यह भी सही है कि गाइडलाइन रेट और बाजार रेट में कितना अंतर है। वीआईपी रोड या एयरपोर्ट इलाके में गाइडलाइन याने सरकारी रेट 800, 1000 रुपए है मगर बाजार रेट 10 हजार रुपए फुट तक है। याने कई जगहों पर गाइडलाइन और बाजार रेट में दस गुना तक का अंतर है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी वर्ग विशेष को सरकारी प्लॉट आबंटित नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि सेरीखेड़ी में ऑल इंडिया अफसरों को प्लॉट आबंटन रोक दिया गया है।

विधायक कॉलोनी पर संशय

हाई कोर्ट के तेवर के बाद राजधानी रायपुर में ही जब जजों और अफसरों की कॉलोनी ठंडे बस्ते में चली गई है, तब विधायक कॉलोनी कैसे बन सकती है। हालांकि, नकटी की जमीन सरकारी है समिलात चारागान की, इस पर सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट गाइडलाइन है। सुप्रीम कोर्ट ने समिलात चारागान की जमीन को सरकारी माना है। सुप्रीम कोर्ट ने समिलात चारागान की जमीन पर मुआवजा देने से भी रोक दिया है। छत्तीसगढ़ में ही ऐसे कई उदाहरण है, जब 2010 से पहले हाउसिंग बोर्ड ने समिलात चारागान की जमीन अधिग्रहित करने के लिए मुआवजा दिया था। मगर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद मुआवजा देना बंद कर दिया गया है।

अफसरों को वस्तुस्थिति बतानी चाहिए

अधिकारियों ने बिलासपुर हाई कोर्ट के तेवर के बाद सेरीखेड़ी में जजों को प्लॉट देना ड्रॉप किया ही, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस का मामला भी लटक गया है। कायदे से अफसरों को सरकार को वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहिए। क्योंकि, कुछ दिनों से प्रस्तावित विधायक कालोनी स्थल पर नाहक विवाद खड़ा हो रहा है।