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राजनांदगांव में मुरूम का अवैध उत्खनन: अधिकारियों की लापरवाही से खनिज माफिया को खुला समर्थन

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राजनांदगांव जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में मुरूम का अवैध उत्खनन और परिवहन एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यह न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इससे शासन को लाखों रुपये के राजस्व का भी भारी नुकसान हो रहा है। बावजूद इसके, इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी जिम्मेदार अधिकारियों को है, लेकिन उनकी निष्क्रियता और लापरवाही के कारण यह गतिविधियां लगातार जारी हैं।

मुरूम का अवैध उत्खनन: एक खुला खेल

विकासखण्ड के आने को गांवों से लेकर राजनांदगांव शहर तक अवैध तरीके से मुरूम का उत्खनन और उसका परिवहन किया जा रहा है। यह मुरूम बिना किसी रॉयल्टी के शहर में आ रही है और खनिज माफिया इन गतिविधियों को बड़ी ही चालाकी से अंजाम दे रहे हैं। अवैध उत्खनन के कारण यहां की नदियों और पहाड़ियों की प्राकृतिक संरचना में भारी बदलाव आ रहा है। इसके परिणामस्वरूप मृदा अपरदन, जलस्रोतों की कमी और पर्यावरणीय असंतुलन जैसे संकट उत्पन्न हो रहे हैं।

राजस्व का भारी नुकसान:

राजस्व का नुकसान इस अवैध उत्खनन और परिवहन के कारण हो रहा है। मुरूम एक गौण खनिज है, जिसका उपयोग निर्माण कार्यों में प्रमुख रूप से होता है, और इसके लिए रॉयल्टी की व्यवस्था है। यदि यह खनिज बिना रॉयल्टी के उत्खनित और परिवहन किया जा रहा है, तो शासन को इस कार्य से जुड़ी हुई राशि का नुकसान हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार, जिले में मुरूम के अवैध उत्खनन से शासन को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है, लेकिन यह मुद्दा लगातार अनदेखा किया जा रहा है।

अधिकारियों की लापरवाही और अव्यवस्था:

यह कोई पहला मामला नहीं है, जब खनिज माफिया ने अवैध उत्खनन किया हो। लेकिन यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है कि अधिकारियों की लापरवाही की वजह से यह अवैध गतिविधियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। जिम्मेदार अधिकारियों को इन गतिविधियों की पूरी जानकारी होती है, फिर भी वे आंखों में पट्टी बांधकर यह सब होने देते हैं। इससे यह साबित होता है कि या तो उन्हें इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है या फिर वे खनिज माफियाओं के दबाव में काम कर रहे हैं।

जिले के चारों ओर के गांवों से, जो राजनांदगांव शहर के करीब हैं, मुरूम का अवैध परिवहन हो रहा है। इन गांवों में जहां मुरूम का उत्खनन किया जा रहा है, वहां के लोग भी इस अवैध कारोबार में शामिल हैं, और कई बार पुलिस प्रशासन या अन्य अधिकारियों के सामने यह गतिविधियां की जाती हैं, लेकिन कुछ नहीं होता। यह स्थिति इस बात की गवाही देती है कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस की लापरवाही का एक बड़ा कारण भी है, जिससे यह अवैध उत्खनन और परिवहन रुक नहीं पा रहा है।

स्थानीय लोगों की भागीदारी और माफिया का खुला समर्थन:

इस पूरे मामले में स्थानीय लोगों की भी बड़ी भूमिका है। कई गांवों के लोग मुरूम के अवैध उत्खनन में सीधे तौर पर शामिल हैं। वे मुरूम की खुदाई करके उसे खनिज माफिया को बेचते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ स्थानीय प्रशासन के अधिकारी और पुलिसकर्मी भी इन माफियाओं का सहयोग करते हैं, या फिर अनदेखी करते हैं। यह खेल खुलेआम चल रहा है, और किसी भी सख्त कार्रवाई का डर माफियाओं में नहीं है।

स्थानीय स्तर पर यह समस्या केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण का परिणाम भी हो सकती है। ऐसे मामलों में अक्सर यह देखा गया है कि राजनीतिक दबाव के कारण अधिकारियों द्वारा कार्रवाई नहीं की जाती, या फिर बहुत ही धीमी गति से कार्रवाई होती है। यह वही समय है, जब खनिज माफिया पूरी तरह से सशक्त हो जाते हैं, और उनका कारोबार लगातार बढ़ता जाता है।

प्राकृतिक संसाधनों की क्षति:

मुरूम का अवैध उत्खनन न केवल आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह है, बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी बहुत खतरनाक है। मुरूम की खुदाई से नदियों और पहाड़ियों का प्राकृतिक रूप बदल रहा है, जिससे जलस्रोतों में कमी और मृदा अपरदन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। यह लंबे समय में न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा, बल्कि इससे खेती-बाड़ी और जल आपूर्ति जैसी आधारभूत सुविधाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

समाप्ति की ओर बढ़ता संकट:

यदि इस समस्या को जल्द ही न सुलझाया गया, तो इसके परिणाम और भी घातक हो सकते हैं। खनिज माफियाओं की ताकत लगातार बढ़ रही है, और प्रशासन की लापरवाही के कारण वे कानून को खुली चुनौती दे रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और अवैध उत्खनन पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी। स्थानीय पुलिस और प्रशासन को मिलकर इस अपराध को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

क्या कहते हैं राजनांदगांव विकासखंड के सरपंच संघ अध्यक्ष नोमेश वर्मा

सरपंच संघ के अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि हमारे सरपंचों के द्वारा जी भी ग्रामीणों में किसानों को खेत बनाने के नाम पर उत्खनन करने वाले मुरुम माफिया की शिकायत खनिज अधिकारी को दी जाती है या उसके दूरभाष में सूचना दी जाती है तो पता नहीं किस तरीके से मुरुम माफिया को इस बात का पता चल जाता है कि अधिकारी आ रहा है उसके पहले वह अपना जेसीबी हो चाहे चैन माउंटेन हो और हाईवे को लेकर दो-चार गांव आगे चले जाते हैं और जैसे ही आया अधिकारी जाता है दिन हो या रात उनके अवैध उत्खनन जारी रहते हैं