रायगढ़ : पशु चिकित्सा विभाग में भर्ती घोटाले की उलझी गांठें खोलने के बजाय प्रशासन उसको लंबा खींच रहा है। अदालत के आदेश पर दोबारा जांच कर कार्रवाई करनी थी। सात महीने तक जांच की नहीं हुई तो कन्टेम्प्ट लग गया। नवंबर 2024 में दोबारा कमेटी बनाई गई जिसने अब जाकर रिपोर्ट कलेक्टर को दी है। सरकारी भर्ती में सांठगांठ करके अपने चहेतों का चयन किया गया। पशु चिकित्सा विभाग में 2012 में हुई अवैध नियुक्तियों को लेकर अब तक फाइल लंबित है। तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल ने जांच कर पूरी प्रक्रिया को ही अवैध पाया था। इसके बाद तत्कालीन उप संचालक एसडी द्विवेदी समेत कई अफसर सस्पेंड हुए थे। साथ ही नियुक्तियों को रद्द किया। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी।
अदालत ने तत्कालीन कलेक्टर की जांच और कार्रवाई को सही पाया, लेकिन दोबारा जांच कर विधि अनुसार कार्रवाई करने का आदेश दिया था। इस मामले को जिला प्रशासन ने लंबे समय तक लटकाए रखा। 15 फरवरी को सुनवाई में अदालत ने छह महीने में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने व कार्रवाई करने का आदेश दिया था। इस आदेश पर अमल नहीं किया गया और पूर्व अपर कलेक्टर राजीव पांडेय ने फाइल दबाकर रखी। कन्टेम्प्ट पिटीशन दायर होने के बाद 12 सितंबर को इसकी सुनवाई हुई। अदालत में सुनवाई का नोटिस आते ही कलेक्टर ने 5 सितंबर को एक नई कमेटी बना दी गई। कोर्ट ने 12 सितंबर से तीन महीने के अंदर जांच पूरी कर रिपोर्ट के अनुसार अंतिम कार्रवाई करने का आदेश दिया था। अब जाकर जांच पूरी हुई है। डिप्टी कलेक्टर महेश शर्मा, उप संचालक धरमदास झरिया समेत अन्य ने जांच कर रिपोर्ट सौंप दी है।
जो पात्र थे, उनकी क्या है गलती
इस मामले में जितने दोषी तत्कालीन उप संचालक एसडी द्विवेदी, डॉ. पीपी श्रीवास्तव, डॉ. शत्रुघ्न सिंह, डॉ. तृप्ति सिंह और डॉ. हितेंद्र कुमार सोनी थे, उतने ही दोषी जिला प्रशासन के वे अधिकारी हैं जिनको जांच करके कार्रवाई करनी चाहिए थी। अदालत के आदेश पर भी पीडि़तों को न्याय नहीं मिल पाया है। तत्कालीन कलेक्टर ने पुख्ता कार्रवाई की थी लेकिन इसके बाद अचानक क्या हुआ। अब रिपोर्ट कलेक्टर को सौंपी जा चुकी है। जो पात्र अभ्यर्थी थे, उनको न्याय मिलने में 13 साल की देरी पहले ही की जा चुकी है। जांच रिपोर्ट में अपात्रों को सेवा से मुक्त करने का अभिमत दिया गया है।
यह था मामला
2012 में स्वच्छकर्ता/परिचारक सह चौकीदार के 32 पदों पर नियुक्ति होनी थी लेकिन तत्कालीन उप संचालक डॉ. एसडी द्विवेदी ने लिखित परीक्षा लेने का आदेश दिया। परीक्षा के बाद 32 के बजाय 42 को ज्वाइनिंग लेटर दे दिए गए। विभाग में कार्यरत लोगों के रिश्तेदारों की नियुक्ति कर दी। एक आवेदक आनंद विकास मेहरा ने नियुक्ति में अनियमितता की शिकायत तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल से की थी। कलेक्टर ने गड़बड़ी मिलने पर 27 सितंबर 2012 को नियुक्ति निरस्त कर दी। इसके खिलाफ 44 लोगों ने अपील की थी। अदालत ने 15 फरवरी 2024 को अंतिम फैसला देते हुए कहा कि मामले की छह महीने में जांच कर गलत नियुक्ति वालों को सेवा से हटाया जाए।
क्या कहते हैं महेश
हमने जांच करके रिपोर्ट कलेक्टर को प्रस्तुत कर दी है। आगे आदेशानुसार कार्रवाई होगी।
– महेश शर्मा, डिप्टी कलेक्टर