नई दिल्ली : शोध व इनोवेशन के क्षेत्र में अग्रणी ब्रिटेन के लिवरपूल विश्वविद्यालय ने भी अब भारत की ओर रुख किया है। क्यूएस रैंकिंग में दुनिया के शीर्ष 165 विश्वविद्यालयों में शामिल लिवरपूल विश्वविद्यालय ने बेंगलुरू में अपना परिसर खोलने की घोषणा की है। जहां अगले साल यानी अगस्त 2026 से शैक्षणिक गतिविधियां शुरू होगी। शुरूआत में विश्वविद्यालय कॉमर्स, मैनेजमेंट और कंप्यूटर साइंस और गेम डिजाइनिंग जैसे कोर्स शुरू करेगा।शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में सोमवार को लिवरपूल विश्वविद्यालय और यूजीसी ने इसे लेकर करार किया है। ब्रिटेन के प्रतिष्ठित रसेल समूह से जुड़े लिवरपूल विश्वविद्यालय को देश में परिसर खोलने की अनुमति देने के साथ ही शिक्षा मंत्रालय ने ये साफ कर दिया है कि उसे देश में विश्वविद्यालय का संचालन वर्ष 2020 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( एनईपी ) के अनुरूप ही करना होगा।
शिक्षा मंत्री ने लिवरपूल विश्वविद्यालय के देश में परिसर खोलने के फैसले पर खुशी जताई और कहा कि यह पहल दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों के साथ भारत की गहरी होती शैक्षणिक साझेदारी की यात्रा में एक मील का पत्थर है।
बैंगलुरू का परिसर एक वैश्विक परिसर
साथ ही यह वैश्विक उच्च शिक्षा में भारत के एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में उभरने की पुष्टि भी है। लिवरपूल विश्वविद्यालय के कुलपति टिम जोन्स ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि बैंगलुरू का परिसर एक वैश्विक परिसर बनेगा। इस मौके पर उच्च शिक्षा सचिव और यूजीसी के अध्यक्ष विनीत जोशी भी मौजूद थे।
गौरतलब है कि लिवरपूल विश्वविद्यालय भारत में अपना परिसर खोलने वाला चौथा विदेशी विश्वविद्यालय है। इससे पहले तीन विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अपना परिसर शुरू कर चुके है। इनमें दो आस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों ने गुजरात के गिफ्ट सिटी में अपना परिसर स्थापित कर चुके है, वहीं ब्रिटेन के साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय इस साल से गुरुग्राम में अपना कैंपस शुरू करने जा रहा है।
हर साल देश के करीब 14 लाख बच्चे विदेशी विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं
इस मौके पर शिक्षा मंत्री प्रधान ने बताया कि इस साल के अंत तक दुनिया के 15 और शीर्ष विश्वविद्यालय देश में अपना परिसर खोल सकते है। इनमें साइंस, टेक्नालाजी, इंजीनियरिंग व मैथमेटिक्स से जुड़े कोर्स संचालित करने वाले संस्थान शामिल है।मंत्रालय का देश में विदेशी विश्वविद्यालय के परिसर को खोलने को लेकर उत्साह इसलिए है क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए अभी हर साल देश के करीब 14 लाख बच्चे इन्हीं विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए जाते है। जहां इन्हें ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है, साथ ही देश की प्रतिभा का भी इससे पलायन हो रहा है। ऐसे में कैंपस खुलने से ऐसे बच्चे देश में रहते हुए ही पढ़ाई कर सकेंगे।