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सिंदूर की खेती से 4.5 लाख रुपए तक कमा सकते हैं किसान, जानें कैसे

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भारत की माटी में कुछ पेड़ ऐसे हैं, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक धारा से जुड़े हैं, बल्कि जीवन के कई पहलुओं में गहरी छाप छोड़ते हैं. उनमें से एक है सिंदूर का पेड़, जिसे आजकल Vermilion Farming के रूप में जाना जाता है. यह पेड़ सिर्फ अपनी लाल रंगत के लिए नहीं, बल्कि उस रंग के पीछे छिपी आस्था और परंपरा के लिए भी प्रसिद्ध है. दक्षिण भारत, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे क्षेत्रों में यह पेड़ अब किसानों के लिए न केवल एक पौधा, बल्कि एक सोने की खान बन चुका है.

क्या है सिंदूर का पेड़?

सिंदूर का पेड़ मुख्यतः उष्णकटिबंधीय जलवायु में उगता है और इसके बीजों से एक प्राकृतिक रंगद्रव्य प्राप्त होता है, जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों, कॉस्मेटिक्स और औषधियों में किया जाता है. इसके बीजों से निकाला गया रंग ‘एन्नाटो’ (Annatto) कहलाता है,जो विश्वभर में प्राकृतिक रंग के रूप में लोकप्रिय है.

कम लागत और अधिक मुनाफा

एक सिंदूर का पौधा लगभग 30 रुपये से 50 रुपये में तैयार हो जाता है. इसकी खेती में ज्यादा पानी, उर्वरक या कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती, जिससे इसकी देखरेख का खर्च काफी कम होता है.एक बार लगाया गया पौधा लगभग 15-20 साल तक फल देता है.और एक एकड़ में लगभग 400 से 500 पेड़ लगाए जा सकते हैं.एक परिपक्व पेड़ से सालाना औसतन 2 से 3 किलो बीज प्राप्त होते हैं. बाज़ार में इन बीजों की कीमत 300 से 500 रुपये प्रति किलो होती है. यदि एक पेड़ से सालाना 900 रुपये तक की आमदनी होती है, तो 500 पेड़ों से सालाना लगभग 4.5 लाख तक का मुनाफा संभव है.

सिंदूर बनाने की प्रक्रिया/ Process of Making Vermilion

  1. बीज संग्रहण: सबसे पहले बिक्सा पौधे के फलों से बीज निकाले जाते हैं.
  2. धूप में सुखाना: इन बीजों को कुछ दिनों तक धूप में सुखाया जाता है ताकि इनमें मौजूद नमी समाप्त हो जाए.
  3. पीसना: सूखे बीजों को पीसकर एक लाल रंग का पाउडर तैयार किया जाता है.
  4. छानना और शुद्धिकरण: पाउडर को छानकर उसमें से अशुद्धियाँ हटाई जाती हैं.
  5. सुगंधित और औषधीय तत्व मिलाना (यदि आवश्यक हो): इसमें हल्दी, चंदन, कपूर, या गुलाब जल जैसे तत्व मिलाकर इसे और भी उपयोगी बनाया जा सकता है.

स्थानीय बाजार से लेकर वैश्विक मांग तकभारत में अभी भी सिंदूर की खेती बहुत सीमित है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एन्नाटो की भारी मांग है.अमेरिका, जापान, और यूरोप के कई देशों में प्राकृतिक रंगों की मांग बढ़ रही है.इसके कारण भारत में सिंदूर उत्पादन को प्रोत्साहन मिल सकता है.

सरकारी प्रोत्साहन और तकनीकी सहायताकुछ राज्यों की कृषि विभाग सिंदूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण, पौध वितरण और विपणन सहयोग दे रहे हैं.विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में यह खेती आदिवासी किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है.