जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहली बार विधानसभा में बयान दिया. पहलगाम अटैक पर जम्मू कश्मीर के विशेष सत्र के दौरान अब्दुल्ला ने इस हमले की निंदा करते हुए कश्मीरियों के जज्बे को सलाम किया.
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि स्पीकर साहब उत्तर से लेकर दक्षिण, पूर्व से लेकर पश्चिम तक.. कहां अरुणाचल प्रदेश, कहां गुजरात, कहां जम्मू-कश्मीर, कहां केरल और बीच की रियासतें और पूरा मुल्क इस हमले की चपेट में आया है. ये पहला हमला नहीं था. हमने कई हमले होते देखे हैं. हमने अमरनाथ यात्रा के कैंप पर हमले होते देखे हैं. हमने डोडा के गांव पर हमले होते देखे हैं. हमने कश्मीरी पंडितों की बस्तियों पर हमले होते देखे हैं. हमने सरदारों की बस्तियों पर हमले होते देखे हैं. लेकिन बीच में एक ऐसा वक्त आया, जब लगा ये थम गया. ये 21 साल में इतना बड़ा सिविलियन हमला है.
अब्दुल्ला ने कहा कि हमें लग रहा था कि ये हमले अब हमारे अतीत का हिस्सा है. ये हमारी आज की कहानी नहीं है, ये हमारा भविष्य नहीं है. लेकिन बदकिस्मती से बैसरन ने वो हालात पैदा कर दिए. हमें अब लगता है कि अगला हमला कहां होगा. उस दिन विपक्ष के नेता के साथ मैं कंट्रोल रूम मौजूद था, जब हमने 26 लोगों को वहां श्रद्धांजलि दी. मेरे पास अल्फाज नहीं थे कि मैं क्या कहकर उनके घरवालों से माफी मांगू. ये जानते हुए कि जम्मू कश्मीर की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी यहां के लोगों की चुनी हुई हुकूमत की नहीं है. लेकिन मुख्यमंत्री होने की हैसियत से मैंने इन लोगों को दावत दी थी यहां आने की. मेजबानी होने के नाते ये मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं इन्हें सही सलामत वापस भेजूं. लेकिन नहीं भेज पाया. मेरे पास माफी मांगने के अल्फाज नहीं थे. क्या कहता उनको, उनके छोटे बच्चों को जिन्होंने अपने वालिद को खून में लिपटे देखा है. उस नेवी अफसर की विधवा को जिनकी शादी को अभी चंद दिन ही हुए थे.
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस हमले ने हमें अंदर से खोखला कर दिया है. हममे से कोई इस हमले के साथ नहीं है. कहते हैं कि हर खराबी में कहीं न कहीं हमें रोशनी की करिण ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए. बहुत मुश्किल है इन हालात में वो रोशनी ढूंढना. लेकिन स्पीकर साहब पहली मर्तबा 26 साल में मैंने जम्मू-कश्मीर में किसी हमले के बाद लोगों को इस तरह बाहर आते देखा है. कठुआ से लेकर कुपवाड़ा तक शायद ही कोई शहर या गांव ऐसा होगा, जहां लोगों ने इस तरह बाहर आकर इस हमले की निंदा की है. लोगों ने कहा कि ये हमला Not in My Name. ये हमला आपने मेरे लिए नहीं किसी और के लिए किया होगा. लोगों के इस कदर बाहर आने में किसी का हाथ नहीं है, ना हुकूमत का ना ही किसी और का. हम इस गाड़ी में चढ़े जरूर थे, हमने इसकी सवारी की. लेकिन इस गाड़ी को बनाकर इसका चलाया लोगों ने ही. लोगों ने गाड़ी बनाकर इस पर सवार होकर जुलूस निकाला, नारे दिए, बैनर बनाए और मोमबत्तियां जलाईं.
जम्मू कश्मीर की सुरक्षा की जिम्मेदार फिलहाल हमारी नहीं है. लेकिन मैं इस मौके का इस्तेमाल स्टेटहुड की मांग के लिए नहीं करूंगा. मैं किस मुंह से पहलगाम के वाकये को इस्तेमाल कर सियासतदारों से कहूं कि हमें अब स्टेटहुड दे दें. मेरी सियासत क्या इतनी सस्ती है? मुझे क्या 26 लोगों के मरने की इतनी कम कद्र है कि मैं जाकर कहूं कि अब तो 26 लोग मर गए, अब हमें स्टेटहुड दे दीजिए. स्टेटहुड की बात हमने पहले भी की है और आगे भी करेंगे. लेकिन लानत हो मुझ पर कि अगर मैं आज ये कहकर मर्कज के पास जाऊं कि 26 मर गए अब स्टेटहुड दे दो. इसकी मांग हम करेंगे लेकिन इस मौके पर नहीं. इस मौके पर ना कोई सियासत, ना कोई बिजनेस रूल्स, ना कोई स्टुटेहुड ना कुछ और. एक ही चीज इस हमले की कड़ी निंदा और उन 26 लोगों के साथ दिल की गहराई से हमदर्दी और कुछ नहीं. आज नहीं. टेबल हम किसी और मौके पर थपथपाएंगे लेकिन आज नहीं.
उमर ने कहा कि मिलिटेंसी, टेरर, आतंकवाद और दहशतगर्दी…इनका खात्मा तब होगा, जब लोग हमारे साथ होंगे. ये उस मौके की शुरुआत है. अगर हम इस मौके पर एहतियात से कदम उठाएं. हमारी तरफ से कोई ऐसा कदम नहीं उठना चाहिए, जिससे हम लोगों को अपने से दूर करें. हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए. हमारी तरफ से ऐसा कोई एक्शन नहीं होना चाहिए जिससे ये अपने-आप में पैदा हुई भावना को ठेस पहुंचे. क्योंकि बंदूक के जरिए हम मिलिटेंसी को कंट्रोल कर सकते हैं लेकिन उसे खत्म नहीं कर सकते. ये खत्म तभी होगा, जब लोग हमारे साथ होंगे और आज हम वहां तक पहुंच रहे हैं, जब लोगों का साथ हमें मिल रहा है.
उन्होंने कहा कि इस हमले के दौरान स्थानीय लोगों ने पूरी मदद की. आदिल ने जान की परवाह किए बगैर लोगों की जान बचाई. वह कश्मीरी चाहता तो भाग सकता था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. होटल वालों ने लोगों की मदद के लिए कमरे खोल दिए. इस हमले के खिलाफ हर एक कश्मीरी बाहर आया. मस्जिदों में खामोशी को हम समझ सकते हैं. मैं कश्मीरियो को सलाम करता हूं.